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________________ भगवान् ऋषभदेव पूर्ण युवा हो चुके थे और बड़ी योग्यता से जनता का नेतृत्व कर रहे थे। गृहस्थ धर्म का पूर्ण आदर्श स्थापित करने के लिए अब विवाह का प्रसंग आया। बताया जा चुका है कि युगलियों के युग में मानव-जीवन की कोई विशेष मर्यादा नहीं थी। वह युग, सभ्यता की दृष्टि से एक प्रकार से अविकसित युग कहा जा सकता है। उस समय विवाह-संस्कार की प्रथा भी प्रचलित न थी। भगवान् ऋषभदेव ने कर्मभूमि युग के आदर्श के लिए और पारिवारिक जीवन को पूर्ण रुप से व्यवस्थित करने के लिए विवाह-प्रथा को प्रचलित करना उचित समझा। अतएव श्री नाभिराजा और देवराज इन्द्र के परामर्श से ऋषभदेव का विवाह सुमंगला और सुनन्दा नाम की कन्याओं के साथ सम्पन्न हुआ। भारतवर्ष के उस युग में यह प्रथम विवाह था। ऋषभदेव के विवाह का आदर्श जनता में भी फैला और समस्त मानव-जाति सुगठित परिवारों के रुप में फूलने-फलने लगी। |ऋषभदेव का परिवार - सुमंगला के परम प्रतापी पुत्र भरत हुए। ये बड़े ही प्रतिभाशाली और सुयोग्य शासक थे। आगे चलकर इन्होंने अप्रतिम शौर्य से भरत-क्षेत्र के छह खण्डों पर अपनी विजयपताका फहराई और इस वर्तमान अवसर्पिणीकाल के प्रथम चक्रवर्ती राजा हुए। सुप्रसिद्ध वैदिक पुराण श्रीमद्भागवत के अनुसार इन्हीं भरत चक्रवती के नाम पर हमारा देश भारतवर्ष के नाम से प्रख्यात हुआ। दूसरी रानी सुनन्दा के पुत्र बाहुबली हुए। बाहुबली अपने युग के माने हुए शूरवीर योद्धा थे। इनका शारीरिक बल, उस समय अद्वितीय समझा जाता था। ये बड़े ही स्वतन्त्र प्रकृति के युवक थे। जब भरत चक्रवर्ती हुए, तो उन्होंने बाहुबली को भी अपने करदत्त राजा के रुप में अधीन रहने के लिए बाध्य किया, परन्तु वे कब मानने वाले थे। बाहुबली भरत को बड़े भाई के रुप में तो आदर दे सकते थे, परन्तु - an जैनत्व की झाँकी (16) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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