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प्रतिबन्ध नहीं है। किसी भी जाति का और किसी भी देश का मनुष्य जैन-धर्म का पालन कर सकता है। हिन्दू हो, मुसलमान हो, ईसाई हो, ब्राह्मण हो, चाण्डाल हो, कोई भी क्यों न हो, जो जैन-धर्म का पालन करे, अपनी आत्मा को आध्यात्मिक पवित्रता के पथ पर ले चले, अन्दर में जिनत्व की ज्योति जगा सके, वही जैन है ।
जैन-धर्म के मुख्य सिद्धान्त
जैन-धर्म का मुख्य सिद्धान्त बहुत गम्भीर है। अतः उसका पूरा परिचय तो जैन-धर्म के प्राचीन ग्रन्थों के अध्ययन से ही हो सकता है। हाँ, संक्षेप में जैन-धर्म के भोटे-मोटे सिद्धान्त इस प्रकार हैं
१. जगत अनादि और अनन्त है ।
. २. आत्मा अजर-अमर है।
३. आत्मा अनन्त है ।
४. आत्मा ही परमात्मा होता है।
५. आत्मा चैतन्य है ।
६. कर्म जड़ है।
७. आत्मा की अशुद्ध-स्थिति ही संसार है । ८. आत्मा की पूर्ण शुद्ध अवस्था ही मोक्ष है। ६. आत्मा की अशुभ प्रवृत्ति पाप है।
१०. आत्मा की शुभ प्रवृत्ति पुण्य है।
११. विशुद्ध वीतराग भाव ही श्रेष्ठ धर्म है। १२. धर्म - साधना में जाति-पाँति का कोई भेद नहीं है।
१३. अहिंसा ही उत्कृष्ट मानव-धर्म है।
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