________________
सत्य का उपासक होने से जैन-धर्म स्याद्वाद-धर्म है। 'अर्हत' जिन भगवान को कहते हैं, इसलिए उनका बताया हुआ धर्म, आर्हत-धर्म है। निर्ग्रन्थ का अर्थ परिग्रह-रहित होता है। जैन धर्म परिग्रह का अर्थात् धन-सम्पत्ति के संग्रह- सम्बन्धी मोह का त्याग बतलाता है, इसलिए यह निर्ग्रन्थ-धर्म है। जैन-धर्म अनादि है
जैन धर्म कब से चला ? जैन धर्म नया नहीं चला है, वह अनादि है। अहिंसा और दया ही तो जैन-धर्म है। संसार में जिस प्रकार दुःख अनादि है, उसी प्रकार जीवों को दुःख से बचाने वाली अहिंसा एवं दया भी अनादि है। इसलिए अनादि अहिंसा और दया का विशुद्ध-मार्ग ही जैन-धर्म कहलाता है।
जिन भगवान का कहा हुआ धर्म ही तो जैन-धर्म है, इसलिए अनादि कैसे हुआ? जिन भगवान किसी खास समय-विशेष में कोई एक व्यक्ति विशेष नहीं हुए हैं। पूर्वकाल में राग-द्वेष को जीतने वाले जिन भगवान अनन्त हो गए हैं, और भविष्य में भी अनन्त होते रहेंगे, अतः जैन धर्म अनादि काल से चला आता है, समय-समय पर होने वाले जिन भगवान उसे अधिकाधिक प्रकाशित करते हैं, देश-काल की परिस्थिति के अनुसार उसकी नवीन पद्धति से पुनः स्थापना करते हैं। जिन भगवान जैन धर्म के चलाने वाले नहीं, वरन उसका समय-समय पर सुधार करने वाले उद्धारक हैं। जैन कौन हो सकता है ?
सच्चा जैन किसे कहते हैं ? धर्म का मूल दया है। जो जीवमात्र को अपने समान समझकर उनको हिंसा से बचाता है, प्राणी मात्र के लिए दयाभाव रखता है, वह सच्चा जैन है।
जैन धर्म का पालन कौन करता है। जैन धर्म का कोई भी भव्य प्राणी पालन कर सकता है। जैन धर्म में जाति और देश का
-
-
- m
जैनत्व की झाँकी (10)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org