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. जातिवाद मानवजाति के लिए अभिशाप सिद्ध हुआ है। उसके आधार पर धर्म-जैसी पवित्र वस्तु को भी टुकड़ों में बाँट दिया गया और मानव पर भयंकर अत्याचार किये गये।
प्रस्तुत निबन्ध में पढ़िए-जातिवाद के अभिशाप के विरुद्ध महाश्रमण भगवान् महावीर का क्रान्त उद्घोष और जातिनिरपेक्ष धर्म संघ की रचना का इतिहास।
भगवान् महावीर और जातिवाद
आजकल भारत का धार्मिक वायुमण्डल बहुत ही क्षोभ और उथल-पुथल से भरा नजर आ रहा है। जिधर देखो उधर ही धार्मिक क्रांति की लहर उठ रही है। आज का युग धार्मिक संघर्ष का युग माना जाता है। यही कारण है कि वर्तमान युग में धार्मिक विचारों को लेकर अच्छी-खासी मुठभेड़ होती रहती है।
आजकल जो सबसे बड़ा वैचारिक संघर्ष है, वह है स्पृश्य एवं अस्पृश्य आदि जातिवाद की व्यवस्था के सम्बन्ध में। इस निबन्ध में एक पक्ष कुछ व्यवस्था देता है, तो दूसरा पक्ष कुछ और ही। इस समय प्रातः समस्त धार्मिक जगत, स्थिति-पालक और सुधारक नामक दो परस्पर विरुद्ध पक्षों में बँटा हुआ है। दोनों पक्षों की ओर से, अपने-अपने पक्ष की पुष्टि के लिए आकाश-पाताल एक किए जा रहे हैं।
परन्तु वास्तव में सत्य क्या है, यह अभी बीच में ही लटक रहा है। अन्तिम निर्णय के लिए प्रत्येक धर्म वाले अपने-अपने धर्म-प्रवर्तकों को न्यायाधीश के रुप में आगे ला रहे हैं और उनके इस सम्बन्ध में दिए हुए निर्णय प्रकट किए जा रहे हैं। इससे बहुत कुछ सत्य पर प्रकाश पड़ा है फिर भी वास्तविक निर्णय तो अभी अन्धकार में ही है।
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भगवान महार
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जातिवाद (169)