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________________ और २ विदेह मुक्त श्री सिद्ध भगवान् । मोक्ष से पहले शरीरधारी परमात्मा जीवन्मुक्त अरिहन्त कहलाते हैं, और शरीर से रहित होकर मोक्ष में पहुँचने पर ही वे सिद्ध भगवान् हो जाते हैं । बहिरात्मा संसारी - जीवन का प्रतिनिधि है । अन्तरात्मा साध् क - जीवन का प्रतिनिधि है और परमात्मा साध्य जीवन का प्रतिनिधि है । बहिरात्मा - दशा का त्याग कर अन्तरात्मा होना चाहिए और फिर विकास करते-करते परमात्म की भूमिका तक पहुँचा जा सकता है । परमात्मा हमारा लक्ष्य है। जैन-धर्म का सिद्धान्त है कि * प्रत्येक आत्मा रहित होकर, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी परमात्मा हो सकता है। इसलिए जैन-धर्म का यह मूल स्वर है कि 'अप्प सौ परमप्पा' अर्थात् आत्मा ही परमात्मा है । Jain Education International 000 For Private & Perआखा और उसका स्वरूप (165) library.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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