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के भरोसे ही नहीं बैठा रहता । उचित पुरुषार्थ ही विकास का मार्ग है, सिद्धि का सौपान है । अतएव विश्वास और ज्ञान के अनुसार अहिंसा एवं सत्य आदि सदाचार की साधना करना ही सम्यक् चारित्र है । इस प्रकार जैन-दर्शन में कर्म और कर्ममुक्ति का विवेचन बहुत ही तर्क- पूर्ण एवं यथार्थ दृष्टि से किया गया है।
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