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रुप में भटकने के लिए प्रेरणा नहीं देता। वह मुक्ति का साधन अपनी आत्मा में ही खोजता है। जैन तीर्थंकरों ने मोक्ष-प्राप्ति के निम्न तीन साधन बताए हैं
१. सम्यक् - दर्शन
"आत्मा है, यह कर्मों से बँधा हुआ है और एक दिन वह बन्धन से मुक्त होकर सदा काल के लिए अजर-अमर परमात्मा भी हो सकता है ।" इस प्रकार के दृढ़ आत्म-विश्वास का नाम ही सम्यक् - दर्शन है। सम्यक् - दर्शन के द्वारा हीनता और दीनता आदि के भाव क्षीण हो जाते हैं और आत्म-शक्ति के अटल विश्वास का भाव जागृत हो जाता है ।
२. सम्यक् - ज्ञान
चैतन्य और जड़ पदार्थों के भेद का ज्ञान करना, संसार और उसके राग-द्वेषादि कारण तथा मोक्ष और उसके सम्यक् - दर्शनादि साधनों का भली-भाँति चिन्तन मनन करना, सम्यक् ज्ञान कहलाता है । सांसारिक दृष्टि से कितना ही बड़ा विद्वान क्यों न हो, यदि उसका ज्ञान मोह-माया के बन्धनों को ढीला नहीं करता है, विश्व कल्याण की भावना को प्रोत्साहित नहीं करता है। आध्यात्मिक जागृति में बल नहीं पैदा करता है, तो वह ज्ञान, सम्यक् - ज्ञान नहीं कहला सकता । सम्यक् ज्ञान के लिए आध्यात्मिक चेतना एवं पवित्र उद्देश्य की अपेक्षा है। मोक्षाभिमुखी आत्म, चेतना ही वस्तुतः सम्यक् - ज्ञान है।
३. सम्यक् चारित्र
सम्यक् का अर्थ है सच्चा और चारित्र का अर्थ है आचरण । अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य आदि व्रतों का पालन करना सम्यक् चारित्र है ।
जैन-धर्म चारित्र प्रधान धर्म है । वह केवल भावनाओं और संकल्पों .
जैनत्व की झाँकी (160) Jain Education International
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