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अंकुर हैं, जो उन्हें अपनी साधना के जल-सिंचन से विकसित करके महावृक्ष के रूप में पल्लवित कर सकता है, उसे 'जिनत्व' का अमर-फल प्राप्त हो सकता है। राग-द्वेष-विजेता अरिहंतों के जीवन सम्बन्धी उच्च आदर्श, साधनक-जीवन के लिए, क्रमवद्ध अभ्युदय एवं निःश्रेयस के रेखा-चित्र उपस्थित करते हैं। अतएव श्रमण-संस्कृति का उतारवाद केवल सुनने-भर के लिए नहीं है, अपितु जीवन के हर अंश में गहरा उतारने के लिए है। उतारवाद, मानव-जाति को पाप के फल से बचने की नहीं, अपितु मूलतः पाप से ही बचने की प्रेरणा देता है और जीवन के ऊँचे आदर्शो के लिए जनता के हृदय में अजर, अमर, अनन्त सत्साहस की अखण्ड ज्योति जगा देता है।
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जय जोली (०.
जैनत्व की झांकी (150)
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