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अन्धकार में भटकते हुए मनुष्य को किसी ऐसे आध्यात्मिक पथ-प्रदर्शन की आवश्यकता होती है, जो उसे निस्वार्थ भाव से दिव्य प्रकाश का दर्शन करा सके। साधना की भाषा में हम उस पथ-प्रदर्शक को 'गुरु' कहते हैं, जिसके स्वयं के जीवन में दिव्य गुणों का प्रकाश उतर चुका हो, और जो जन-जीवन को भी उसी प्रकाश की ओर ले चलता हो।
गुरु
मानव-हृदय के अन्धकार को दूर करने वाला कौन होता है, यह प्रश्न धर्म और दर्शन के क्षेत्र में अनादि काल से चला आ रहा है। संसार का सबसे सघन अन्धकार मनुष्य के अपने ही मन में है, और उस अन्धकार को कौन दूर कर सकता है, आइए इस प्रश्न पर विचार करें।
मानव-मन के अज्ञान अन्धकार को दूर करने वाला और ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाला गुरु होता है। गुरुदेव के बिना दुनिया के भोग-विलासों में भूले-भटके हुए प्राणी को अन्य कौन सत्य का दर्शन करा सकता है ? ज्ञान की आँखें गुरु ही देता है। ... परन्तु प्रश्न है कि गुरु कौन होते हैं। सच्चे गुरु का क्या लक्षण है ? जैन धर्म में गुरु किसे कहते हैं ? जैन धर्म में गुरु का महत्व बहुत बड़ा हैं, परन्तु है वह सच्चे गुरु का। गुरु के लक्षण
जैन-धर्म अन्ध श्रद्धालु धर्म नहीं है, जो हर किसी दुनियादार भोगविलासी आदमी को गुरु मानकर पूजने लगे। वह गुणों की पूजा करता है, शरीर और वेष की नहीं। जैन-धर्म चैतन्य स्वरुप आत्मदेव की पूजा करने वाला है। इसलिए वह आध्यात्मिक गुणों का पुजारी है।
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