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सदाचार के लिए स्वतन्त्रता होती है या दुराचार के लिए ? क्या कोई न्यायी प्रजावत्सल शासक ऐसा करेगा कि पहले तो प्रजा को स्वतन्त्र रुप से जानबूझ कर चोरी और दुराचार करने दे, और फिर उन्हें दण्ड दे कि तुमने चोरी क्यों की? दुराचार क्यों किया? आज के प्रगतिशील युग में तो इस प्रकार का बुद्ध शासक एक दिन भी गद्दी पर नहीं टिक सकता। वीतराग किसी को सुखी और दुःखी नहीं करता
ईश्वर राग और द्वेष से सर्वथा रहित है। जब वह राग-द्वेष से सर्वथा रहित है, तो संसार बनाने के झंझट में क्यों पड़ता है ? राग-द्वेष से रहित वीतराग पुरुष सृष्टि को बनाने और बिगाड़ने के खेल में पड़ना कभी पसन्द नहीं कर सकता। संसार की रचना में तो सदा-सर्वथा राग-द्वेष का सामना करना पड़ेगा। किसी को सुखी बनाना होगा, किसी को दुःखी। किसी को धनी बनाना होगा, किसी को निर्धन। किसी कश्मीर जैसी स्वर्ग भूमि रहने को देगा, किसी को जलता हुआ मरुस्थल। बिना राग-द्वेष के यह भेद-वृद्धि कैसे होगी? ___ यदि आप यह कहें कि वह अपनी इच्छा से नहीं करता। हम पूछते हैं-किसकी इच्छा से करता है ? यदि किसी दूसरे की इच्छा से जबर्दस्ती ईश्वर को इस अमंगल कार्य में संलग्न होना पड़ता है, तो फिर वह परतन्त्र, ईश्वर ही कैसा रहा? तब तो वह ईश्वर से जबर्दस्ती काम कराने वाली शक्ति ही ईश्वर कहलाएगी? दूसरी बात यह है कि ईश्वर कृतकृतत्य है। कृतकृत्य उसे कहते हैं, जिसे कोई कार्य करना शेष न रहा हो। यदि संसार के कार्य ईश्वर को ही करने हैं, तो वह कृतकृत्य नहीं रह सकता। वह भी फिर संसारी जीवों के समान ही उलझन में फँसा रहने वाला साधारण प्राणी हो जाएगा। __ आप यहाँ फिर वही पुराना तर्क उपस्थित करेंगे कि-'ईश्वर स्वयं
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ईश्वर जगत्कर्ता नही (139) For Private & Personal Use Only
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