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________________ दीन-दुखी और दुराचारी जीवों को क्यों पैदा करता ? आज जिसे दुःखी देखकर हमारा हृदय भी गैर आता है, उसे बनाते समय और इस दुःखद परिस्थिति में रखते समय यदि ईश्वर को दया नहीं आई, तो उसे हम दयालु कह सकते हैं ? ईश्वर पापी को रोकता क्यों नहीं ? पौराणिक सनातन-धर्मी कहते हैं कि जब संसार में पापी और दुराचारी बढ़ जाते हैं, तो उनका नाश करने के लिए ईश्वर अवतार धारण करता है। आर्य समाजी बन्धु भी यह मानते हैं कि ईश्वर अवतार तो धारण नहीं करता, परन्तु दुष्टों को दण्ड अवश्य देता हैं। जैन- दर्शन पूछता है कि ईश्वर तो सर्वज्ञ है। वह जानता ही है कि ये पापी और दुराचारी बनकर मेरी सृष्टि को तंग करेंगे, फिर उन्हें पैदा ही क्यों करता है ? जहर का वृक्ष पहले लगाना और फिर उसे काटना, यह कहाँ की बुद्धिमानी है ? कोई भी बुद्धिमान मनुष्य यह नहीं करेगा कि पहले व्यर्थ ही कीचड़ में वस्त्र खराब करे और फिर उसे धोए । दूसरी बात इस सम्बन्ध में यह है कि क्या वे पापी, ईश्वर से भी बढ़कर बलवान हैं ? क्या ईश्वर उनको दुराचार करने से रोक नहीं सकता ? जो ईश्वर इच्छा-मात्र से इतना बड़ा विराट् जगत् बना सकता है, क्या वह अपनी प्रजा को दुराचारी से सदाचारी नहीं बना सकता ? यदि वह कुछ भी दया रखता होता, तो अवश्य ही अपनी शक्ति का उपयोग दुष्टों को सज्जन बनाने में रखता । यह कहाँ का न्याय है कि पाप करते समय तो अपराधियों को रोकता नहीं, परन्तु बाद में उन्हें दण्ड देना, नष्ट करना । उस सर्वशक्तिमान ने जीवों में पहले दुराचार करने की बुद्धि ही क्यों उत्पन्न होने दी ? आप कहेंगे-ईश्वर ने जीवों को कर्म करने में स्वतन्त्रता दे रखी हैं, अतः वह नहीं रोक सकता । विचार किजिए, यह भी कोई स्वतन्त्रता है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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