SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कहता है? कुम्हार की दृष्टि से यद्यपि वह सत् है तथापि सुनार की दृष्टि से वह असत् है । कल्पना कीजिए - सौ घड़े रखे हैं। घड़े की दृष्टि से तो वे सब घड़े हैं, इसलिए सत् हैं । परन्तु घट से भिन्न जितने भी पट आदि अघट हैं, उनकी दृष्टि से असत् है । प्रत्येक घड़ा भी अपने गुण, धर्म और स्वरुप से ही सत् है, किन्तु अन्य घड़ों के गुण, धर्म और स्वरुप से सत् नहीं है । घड़ों में भी आपस में भिन्नता है न ? एक मनुष्य अकस्मात् किसी दूसरे के घड़े को उठा लेता है, और फिर पहचानने पर यह कह कर कि यह मेरा नहीं हे, वापस रख देता है । इस दशा | में घड़े में असत् नहीं तो क्या है ? 'मेरा नहीं है - इसमें मेरा के आगे जो 'नहीं' शब्द है, वही असत् का अर्थात् नास्तित्व का सूचक है । प्रत्येक वस्तु का अस्तित्व अपनी सीमा में है, सीमा से बाहर नहीं । अपना स्वरुप अपनी सीमा है, और दूसरों का स्वरुप अपनी सीमा के बाहर है, अतः वह पर सीमा है । यदि विश्व की हर एक वस्तु हर एक T वस्तु के रूप में सत् हो जाये तो फिर संसार में कोई व्यवस्था ही न रहे । दूध, दूध रुप में भी सत् हो दही के रुप में भी सत् हो, छाछ के रुप में भी सत् हो पानी के रुप में भी सत् हो, तब तो दूध के बदले में दही, छाछ या पानी हर कोई ले-दे सकता है। याद रखिए - दूध, दूध के रूप में सत् है, दही आदि के रूप में असत् है । क्योंकि स्वरुप सत् है, पर - रुप असत् । | स्याद्वाद का अमर सिद्धान्त दार्शनिक जगत् में बहुत ऊँचा सिद्धांत माना गया है। महात्मा गांधी ने स्याद्वाद सिद्धान्त की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। पाश्चात्य विद्वान् डॉ. थामस आदि का भी कहना है कि- स्याद्वाद का सिद्धान्त बड़ा ही गम्भीर है। यह वस्तु की भिन्न - विभिन्न स्थितियों पर प्रकाश डालता है । " वस्तुतः स्याद्वाद सत्य - ज्ञान की कुञ्जी है । आज संसार में जो सब ओर धार्मिक, सामाजिक, राष्ट्रीय आदि वैर-विरोध का बोलबाला Jain Education International For Private & Personal Use Only अनेकान्तवाद (133) www.jainelibrary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy