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है, वह स्याद्वाद के द्वारा दूर हो सकता है। दार्शनिक क्षेत्र में स्याद्वाद वह सम्राट है जिसके सामने आते ही कलह, ईर्ष्या, अनुदारता, साम्प्रदायिकता और संकीर्णता आदि दोष भयभीत होकर भाग जाते हैं। जब कभी विश्व में शान्ति का सर्वतोभद्र सर्वोदय राज्य स्थापित होगा, तो वह स्याद्वाद के द्वारा ही होगा-यह बात अटल है, अचद्य है।
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जैनत्व की झांकी (134) Jain Education International
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