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________________ जिन भगवान को 'परमात्मा' भी कहा जाता है। परमात्मा का अर्थ है, परम = शुद्ध, आत्मा-चेतन। जो परम = शुद्ध, आत्मा = चेतन हो, वह परमात्मा है। राग-द्वेष को नष्ट करने के बाद ही आत्मा शुद्ध होती है और परमात्मा बनता है। देव कौन? जैन-धर्म संसार के क्रोधी, मानी, मायाबी और लोभी देवताओं को अपना इष्टदेव नहीं मानता है। भला जो स्वयं काम, क्रोध आदि के विकारों में फँसें हैं, वे दूसरों को विकार-रहित होने के लिए क्या आदर्श दे सकते हैं इसीलिए जैन धर्म में सच्चे देव वे ही माने गये हैं, जो राग-द्वेष को जीतने वाले हो, कर्मरुपी शत्रुओं को नष्ट करने वाले हों, अनन्त एवं अक्षय ज्ञान वालें हों, तथा परम शुद्ध आत्मा हों। प्रश्न हो सकता है कि इस प्रकार राग और द्वेष के जीतने वाले जिन भगवान् कौन हुए हैं। एक दो नहीं, अनन्त हो गए हैं। जानकारी के लिए एक-दो प्रसिद्ध नाम बताए जाते हैं। वर्तमान काल-चक्र में सबसे पहले 'जिन' भगवान् ‘ऋषभ देव' हुए हैं। यह भारतवर्ष की सुप्रसिद्ध अयोध्या नगरी के राजा थे। उन्होंने सर्वप्रथम राजा के रुप में न्यायनीति के साथ प्रजा का पालन किया, मानव सभ्यता के आदिम विकासकाल में सामाजिक व्यवस्था की स्थापना की, और बाद में संसार त्याग कर मुनि बने एवं रागद्वेष को क्षय करके जिन भगवान् हो गए, पूर्ण मुक्त हो गए। ___भगवान् नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और भगवान् महावीर भी जिन भगवान् थे। ये महापुरुष राग और द्वेष को पूर्ण रुप से नष्ट कर चुके थे, केवल ज्ञान पा चुके थे। अपने-अपने समय में इन्होंने जनता में अहिंसा और सत्य की प्राण-प्रतिष्ठा की और राग-द्वेष पर विजय पाने के लिए सच्चे आत्मधर्म का उपदेश देकर आत्मा को परमात्मा बनाने का मार्ग प्रशस्त किया। - - - - Jain Education International For Private & Personal Use Only wwदेश (8)brary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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