________________
है, अपने विद्यार्थी की अपेक्षा से मास्टर है। इसी प्रकार अपनी-अपनी अपेक्षा से चाचा, ताऊ, मामा, भानजा, पति, मित्र सब है। एक है। आदमी में अनेक धर्म हैं, परन्तु भिन्न-भिन्न अपेक्षा से। यह नहीं कि उसी पुत्र की अपेक्षा पिता, उसी की अपेक्षा पुत्र, उसी की अपेक्षा भाई, मास्टर, चाचा, ताऊ, मामा और भानजा हो। ऐसा नहीं हो सकता। यह पदार्थ विज्ञान के नियमों के विरुद्ध है।
__ स्याद्वाद को समझने के लिए इन उदाहरणों पर और ध्यान दीजिए-एक आदमी काफी ऊँचा है, इसलिए कहता है कि मैं बड़ा हूँ। हम पूछते हैं-'क्या आप पहाड़ से भी बड़े हैं ?' वह झट कहता है-'नहीं साहब, पहाड़ से तो मैं छोटा हूँ। मैं तो इन साथ के आदमियों की अपेक्षा से कह रहा था कि मैं बड़ा हूँ।' अब एक दूसरा आदमी है। वह अपने साथियों से नाटा है, इसलिए कहता है कि-'मैं छोटा हूँ।' हम पूछते हैं-'क्या आप चींटी से भी छोटे हैं ?' वह झट उत्तर देता है-'नहीं साहब, चींटी से तो मैं बड़ा हूँ। तो मैं इन कद्दावर साथियों की अपेक्षा से कह रहा था कि मैं छोटा हूँ।'
इस उदाहरण से अपेक्षावाद का मूल समझ में आ गया होगा कि हर एक चीज छोटी भी है और बड़ी भी। अपने से बड़ी चीजों की अपेक्षा छोटी है और अपने से छोटी चीजों की अपेक्षा बड़ी है। इसी प्रकार प्रत्येक वस्तु के दो पहूल होते हैं और उन्हें समझने के लिए अपेक्षावाद का यह सिद्धान्त उन पर लागू करना होगा। दर्शन की भाषा में इसे अनेकान्तवाद कहते हैं। सम्पूर्ण हाथी का दर्शन ___अनेकान्तवाद को समझने के लिए प्राचीन आचार्यों ने हाथी का उदाहरण दिया है। एक गाँव में जन्म के छह अन्धे मित्र रहते थे। सौभाग्य से एक दिन वहाँ एक हाथी आ गया। गाँव वालों ने कभी हाथी देखा न था, धूम मच गई। अन्धों ने हाथी का आना सुना तो देखने दौड़े। अन्धे तो थे ही, देखते क्या ? हर एक ने हाथ से टटोलना
जैनत्व की झांकी (126) Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org