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________________ 'भी' और 'ही' ___ फल के सम्बन्ध में जब हम कहते हैं कि-फल में रुप भी है, रस भी है, गंध भी है, स्पर्श भी है, तब तो हम अनेकान्तवाद और स्याद्वाद का उपयोग करते हैं और फल का यथार्थ निरुपण करते हैं। इसके विपरीत जब हम एकांत आग्रह में आकर यह कहते हैं कि फल में केवल रुप ही है, रस ही है, गंध ही है, स्पर्श ही है तब हम मिथ्या एकांतवाद का प्रयोग करते हैं। 'भी' में दूसरे धर्मों की स्वीकृति का स्वर छिपा हुआ है, जबकि 'ही' में दूसरे धर्मों का स्पष्टतः निषेध है। रुप भी है-इसका यह अर्थ है कि फलों में रुप भी है और दूसरे रस आदि धर्म भी हैं और रुप ही है, इसका यह अर्थ है कि फल में मात्रा रुप ही है, रस आदि कुछ नहीं है। वह 'भी' और 'ही' का अन्तर ही स्याद्वाद और मिथ्यावाद हैं। 'भी' स्याद्वाद है, तो 'ही' मिथ्यावाद । एक आदमी बाजार में खड़ा है। एक ओर से एक लड़का आया। उसने कहा-'पिताजी'। दूसरी ओर से एक बूढ़ा आया उसने कहा-'पुत्र'। तीसरी ओर से एक अधेड़ व्यक्ति आया। उसने कहा-'भाई'। चौथी ओर से एक लड़का आया। उसने कहा-'मास्टरजी'। मतलब यह है कि-उसी आदमी को कोई चाचा कहता है, कोई ताऊ कहता है, कोई मामा कहता है, कोई भानजा कहता है। सब झगड़ते हैं- यह तो पिता ही है, पुत्र ही है, भाई ही है, और चाचा, ताऊ, मामा या भानजा ही है। अब बताइए, कैसे निर्णय हो ? उनका यह संघर्ष कैसे मिटे ? वास्तव में यह आदमी है क्या? यहाँ पर स्याद्वाद को न्यायाधीश बनाना पड़ेगा? स्याद्वाद पहले लड़के से कहता है-हाँ, यह पिता भी है। तुम्हारे लिए तो पिता है, चूँकि तुम इसके पुत्र हो। और अन्य लोगों का तो पिता नहीं है। बूढ़े से कहता है-हाँ, यह पुत्र भी है। तुम्हारी अपनी अपेक्षा से ही यह पुत्र है, सब लोगों की अपेक्षा से तो नहीं। क्या यह सारी दुनिया का पुत्र है ? मतलब यह है कि वह आदमी अपने पुत्र की अपेक्षा से पिता है, अपने पिता की अपेक्षा से पुत्र है, अपने भाई की अपेक्षा से भाई - Jain Education International For Private & Personal Use Only अनेकान्तलाक (125)rary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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