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'अनेकान्तवाद' और 'स्याद्वाद' के नाम से आप परिचित होगें? किन्तु अनेकान्त वाद का अर्थ क्या है, जीवन के आचार और विचार पक्ष की उलक्षनों को सुलझाकर हमाने मन, मस्तिष्क को वह किस प्रकार संतुलित करता है. इस कला से आप परिचित नहीं हुए होंगे ?
प्रस्तुत निबन्ध में 'अनेकान्तवाद' जैसे गम्भीर विषय को बड़ी ही रोचक और स्पष्ट शैली में | समझाया गया है।
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अनेकान्तवाद
अनेकान्तवाद जैन-दर्शन की आधारशिला है। जैन-तत्व ज्ञान का महल, इसी अनेकान्त सिद्धान्त की सुदृढ़ नींव पर बना है। वास्तव में अनेकान्तवाद जैन-दर्शन का प्राण है। जैन धर्म में जब भी, जो भी बात कही गई है, वह अनेकान्तवाद की कसौटी पर अच्छी तरह जाँच-परख करके ही कही गई है। दार्शनिक साहित्य में जैन दर्शन
का दूसरा नाम अनेकान्तवादी दर्शन भी है। . अनेकान्तवाद का अर्थ है-प्रत्येक वस्तु का भिन्न-भिन्न दृष्टि बिन्दुओं से विचार करना, परखना, देखना। अनेकान्तवाद का यदि एक ही शब्द में अर्थ समझना चाहें, तो उसे 'अपेक्षावाद' कह सकते हैं। जैन दर्शन में सर्वथा एक ही दृष्टिकोण से पदार्थ के अवलोकन करने की पद्धति को अपूर्ण एवं अप्रामाणिक समझा जाता है। और एक ही वस्तु में विभिन्न धर्मों की विभिन्न दृष्टिकोणों से निरीक्षण करने की पद्धति को पूर्ण एवं प्रामाणिक माना गया है। यह पद्धति ही अनेकान्तवाद
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अनेकान्तवाद (123)
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