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समन्वयवाद
भगवान् महावीर का उपदेश है कि पाँचों ही वाद अपने-अपने स्थान पर ठीक हैं। संसार में जो भी कार्य होता है, वह इन पाँचों के समन्वय से अर्थात् मेल से होता है। ऐसा कभी नहीं हो सकता कि एक ही शक्ति अपने बल पर कार्य सिद्ध कर दे। बुद्धिमान मनुष्य को आग्रह कर सब का समन्वय करना चाहिए। बिना समन्वय किये, कार्य में सफलता की आशा रखना दुराशामात्र है। हाँ, आग्रह से कदाग्रह और कदाग्रह से विग्रह पैदा होता है। यह हो सकता है कि किसी कार्य में कोई एक प्रधान हो और दूसरे सब गौण हों। परन्तु यह नहीं हो सकता कि कोई अकेला स्वतन्त्र रुप से कार्य सिद्ध कर दे। ___भगवान् महावीर का उपदेश पूर्णतया सत्य है। हम इसे समझने के लिए आम बोने वाले माली का उदाहरण ले सकते हैं। माली बाग में आम की गुठली बोता है, यहाँ पाँचों कारणों के समन्वय से ही वृक्ष होगा। आम की गुठली में आम पैदा होने का स्वभाव है, परन्तु बोने का, बोकर रक्षा करने का, पुरुषार्थ न हो तो क्या होगा ? बोने का पुरुषार्थ भी कर लिया, परन्तु बिना निश्चित काल का परिपाक हुये आम यों ही जल्दी थोड़ा हो तैयार हो जायेगा ? काल की मर्यादा पूरी होने पर भी यदि शुभ कर्म अनुकूल नहीं है, तो फिर भी आम नहीं लगने का। कभी-कभी किनारे आया हुआ जहाज भी डूब जाता है। अब रही, नयिति। वह सब कुछ है ही। आम से आम होना प्रकृति का नियम है, इससे किसे इन्कार हो सकता है ? और आम होना होता है, तो होता है, नहीं होना होता है, तो नहीं होता है। हाँ या ना, जो होना है, उसे कोई टाल नहीं सकता।
पड़ने वाले विद्यार्थी के लिए भी पाँचों आवश्यक है। पढ़ने के लिए चित्त की एकाग्रता रुप स्वभाव हो, समय का योग भी दिया जाए, पुरुषार्थ यानी प्रयत्न भी किया जाए, अशुभ कर्म का क्षय तथा शुभ कर्म
का उदय भी हो और प्रकृति के नियम एवं भवियव्यता का भी ध्यान Jain Education International For Private & Perso Arte atat 7 H
सिलिन्त दर्शनों का समन्वय (17
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