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४. पौरुषवाद
पुरुषार्थवाद का भी संसार में कम महत्व नहीं हैं। यह ठीक है कि जनता ने पुरुषार्थवाद के दर्शन को अभी तक अच्छी तरह नहीं समझा है, और उसने कर्म, स्वभाव तथा काल आदि को ही अधिक महत्व दिया है। परन्तु पुरुषार्थवाद का कहना है कि बिना पुरुषार्थ के संसार का एक भी कार्य सफल नहीं हो सकता। संसार में जहाँ कहीं भी जो भी कार्य होता देखा जाता है, उसके मूल में कर्ता का अपना पुरुषार्थ ही छिपा होता है। काल कहता है कि समय आने पर ही सब कार्य होता है। परन्तु उस समय में भी यदि पुरुषार्थ न हो तो क्या हो जाएगा? आम की गुठली में आम पैदा होने का स्वभाव है, परन्तु क्या बिना पुरुषार्थ के यों ही कोठे में रखी हुई गुठली में आम का पेड़ लग जायेगा ? कर्म का फल भी, क्या बिना पुरुषार्थ के यों ही हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहने से मिल जायेगा ? संसार में मनुष्य ने जो भी उन्नति की है, वह अपने प्रबल पुरुषार्थ के द्वारा ही की है। आज का मनुष्य हवा में उड़ रहा है, जल में तैर रहा है, पहाड़ों को काट रहा है, परमाणु और उद्जन बम जैसे महान आविष्कारों को तैयार करने में सफल हो रहा है। यह सब मनुष्य का अपना पुरुषार्थ नहीं तो क्या है ? एक मनुष्य भूखा है, कई दिन का भूखा है। कोई दयालु सज्जन मिठाई का थाल भरकर सामने रख देता है। वह नहीं खाता है। मिठाई लेकर मुँह में डाल देता है, फिर भी नहीं चबाता है और गले से नीचे नहीं उतारता है। अब कहिए बिना पुरुषार्थ के क्या होगा ? क्या यों ही भूख बुझ जायेगी। ? आखिर मुँह में डाली हुई मिठाई को चबाने का और चबाकर गले के नीचे उतारने का पुरुषार्थ तो करना ही होगा। तभी तो कहा है
"पुरुष हो पुरुषार्थ करो, उठो।"
ammu
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