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________________ निबौली से आम का वृक्ष उत्पन्न कर सकता है ? कभी नहीं। स्वभाव का बदलना बड़ा कठिन कार्य है। कठिन क्या, असम्भव कार्य है। नीम के वृक्ष को गुड़ और घी से सींचते रहिए, क्या वह मधुर हो सकता है ? दही बिलौने से ही मक्खन निकलता है, पानी से नहीं, क्योंकि दही में मक्खन देने का स्वभाव है। अग्नि का स्वभाव गरम है, जल का स्वभाव शीतल है, सूर्य का स्वभाव प्रकाश करना है और तारों का स्वभाव है रात में चमकना। प्रत्येक वस्तु अपने स्वभाव के अनुसार कार्य कर रही है। स्वभाव के समक्ष विचारे काल आदि क्या कर सकते हैं। ३. कर्मवाद कर्मवाद का दर्शन तो भारतवर्ष में बहुत चिर-प्रसिद्ध दर्शन है। यह एक प्रबल दार्शनिक विचारधारा है। कर्मवाद का कहना है कि काल, स्वभाव, पुरुषार्थ, आदि सब नगण्य हैं। संसार में सर्वत्र कर्म का ही एकछत्र साम्राज्य है। देखिए-एक माता के उदर से एक साथ दो बालक जन्म लेते हैं। उनमें एक बुद्धिमान होता है दूसरा मूर्ख ! ऊपर का वातावरण तथा रहन-सहन एक होने पर भी भेद क्यों है ? मनुष्य के नाते एक समान होने पर भी कर्म के कारण भेद है। बड़े-ब बुद्धिमान्, चतुर पुरुष भूखों मरते हैं, और वजमूर्ख गद्दी-तकियों के सहारे सेठ बनकर आराम करते हैं। एक को माँगने पर भीख भी नहीं मिलती, दूसरा रोज हजार-बारह सौ रुपये खर्च कर डालता है। एक के तन पर कपड़े के नाम पर चिथड़े भी नहीं हैं और दूसरे के यहाँ कुत्ते भी मखमल के गद्दों पर लेट लगाते हैं। यह सब क्या है, अपने अपने कर्म हैं। राजा को रंग और रंक को राजा बनाना, कर्म के बाएँ हाथ का खेल है। तभी तो एक विद्वान ने कहा है-"गहना कर्मणों . गति।" अर्थात् कर्म की गति बड़ी गहन है। . - - जैनत्व की झांकी (1 Jain Education international जैनत्व की झाँकी (118) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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