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________________ १. कालवाद कालवाद का दर्शन बहुत पुराना है। वह काल को ही सबसे बड़ा महत्व देता है। कालवाद का कहना है कि संसार में जो कुछ भी कार्य हो रहे हैं, सब काल के प्रभाव से ही हो रहे हैं। काल के बिना स्वभाव, कर्म, पुरुषार्थ, और नियति कुछ भी नहीं कर सकते। एक व्यक्ति पाप या पुण्य का कार्य करता है, परन्तु उसी समय उसका फल नहीं मिलता। समय आने पर ही कार्य का अच्छा या बुरा फल प्राप्त होता है। एक बालक आज जन्म लेता है। आप उसे कितना ही चलाइए, वह चल नहीं सकता। कितना ही बुलवाइए, बोल नहीं सकता। समय आने पर ही चलेगा और बोलेगा। जो बालक आज किलो-भर का पत्थर नहीं उठा सकता, वह काल-परिपाक के बाद युवा होने पर मन भर के पत्थर को उठा लेता है। आम का वृक्ष आज बोया है। क्या आज ही उसके मधुर फलों का रसास्वादन कर सकते हैं ? वर्षों के बाद कहीं आम्र फलों के दर्शन होंगे। ग्रीष्मकाल में ही सूर्य तपता है। शीतकाल में ही शीत पड़ता है। युवावस्था में ही पुरुष की दाढ़ी-मूंछ आती हैं। मनुष्य स्वयं कुछ नहीं कर सकता। समय आने पर ही सब कार्य होते हैं। यह काल की महिमा है। २. स्वभाववाद स्वभाववाद का दर्शन भी कुछ कम नहीं है। वह भी अपने समर्थन में बड़े पैने तर्क उपस्थित करता है। स्वभाववाद का कहना है कि संसार में जो कुछ कार्य हो रहे हैं, सब वस्तुओं के अपने स्वभाव के प्रभाव से हो रहे हैं। स्वभाव के बिना काल, कर्म, नियति आदि कुछ भी नहीं कर सकते। आम की गुठली में आम का वृक्ष होने का स्वभाव है, इसी कारण माली का पुरुषार्थ सफल होता है, और समय पर वृक्ष तैयार हो जाता हैं। यदि काल ही सब कुछ कर सकता है, तो क्या वह - - - - - - विभिन्न दर्शनों का समन्वय (117) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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