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जैन-दर्शन प्रत्येक वस्तु और प्रत्येक सिद्धान्त के सब पहलुओं पर विचार करके अपना निर्णय देता है, इसलिए उसको साम्यवाद या अनेकान्तवाद भी कहा जाता है।
प्रस्तुत निबन्ध में अनेकान्त दृष्टि से विभिन्न वादों का समन्वय करने की पद्धति का सुन्दर दिग्दर्शन कराया गया है।
विभिन्न दर्शनों का समन्वय
भारतवर्ष में दार्शनिक विचारधारा का जितना अधिक विकास हुआ है, उतना अन्यत्र नहीं हुआ । भारतवर्ष दर्शन की जन्म भूमि है । यहाँ भिन्न-भिन्न दर्शनों के भिन्न-भिन्न विचार बिना प्रतिबन्ध और नियन्त्रण के फलते-फूलते रहे हैं। यदि भारत के सभी पुराने दर्शनों का परिचय दिया जाए तो एक विस्तृत ग्रन्थ तैयार हो सकता है। अतः यहाँ विस्तार में न जाकर संक्षेप में ही भारत के बहुत पुराने पाँच दार्शनिक विचारों का परिचय दिया जाता है । भगवान् महार्द के समय में भी इन दर्शनों का अस्तित्व था और आज भी बहुत से लोग इन दर्शनों के विचार रखते हैं।
लम्बी चर्चा में उतरने से पहले उन पाँचों दर्शनों के नाम बताए देते हैं। पाँचों के नाम इस प्रकार हैं
जैनत्व की झांकी (116) Jain Education International
(१) कालवाद, (२) स्वभाववाद, (३) कर्मवाद,
(४) पौरुषवाद और (५) नियतिवाद ।
इन पाँच दर्शनों के परस्पर में संघर्ष है और प्रत्येक दर्शन परस्पर एक-दूसरे का खण्डन कर केवल अपने ही द्वारा कार्य सिद्ध होने का दावा करता है ।
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