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मानता है, संसार और मोक्ष को मानता है। फिर भी उसे नास्तिक कहने का दुस्साहस कौन कर सकता है ? जिस धर्म में कदम-कदम पर अहिंसा और करुणा की गंगा बह रही हो जिस धर्म में सत्य और सदाचार के लिए सर्वस्त्र का त्याग कर कठोर साधना का मार्ग अपनाया जा रहा हो, जिस धर्म में परम वीतराग भगवान् महावीर जैसे महापुरुषों की विश्वकल्याणमयी वाणी का अमर स्वर गूंज रहा हो, वह धर्म नास्तिक नहीं हो सकता। यदि इतने पर भी जैन-धर्म को नास्तिक कहा जाता है, तब तो संसार का एक भी धर्म आस्तिक नहीं कहला सकेगा।
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जैन-धर्म की आस्तिकता (15)brary.org
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