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किसी को मारना या कष्ट देना मात्र ही हिंसा नहीं है। हिंसा के असंख्य रुप हमारे जीवन में इस प्रकार घुल गए हैं कि उन्हें पहचानना भी कठिन हो गया है। हिंसा के सूक्ष्म रुपों का दिग्दर्शन प्रस्तुत प्रकरण में कराया गया है।
हिसा
किसी जीव को सताना, हिंसा है। झूठ बोलना, कटु बोलना हिंसा है। दंभ करना, धोखा देना हिंसा है। किसी की चुगली करना हिंसा है।
किसी का बुरा चाहना हिंसा है। दुःख होने पर रोना-पीटना हिंसा हैं सुख में अहंकार से अकड़ना हिंसा है। किसी की निन्दा या बुराई करना हिंसा है।
गाली देना हिंसा है। अपनी बढ़ाई हाँकना हिंसा है। किसी पर कलंक लगाना हिंसा है। किसी का भद्दा मजाक करना हिंसा है।
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जैनत्व की झाका (102) Erprivate &Personal use only Jain Education International
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