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सुविधाओं का परित्याग), आत्मशुद्धि की उक्त आन्तरिक धारा को आभ्यन्तर तप कहा गया है। ___आभ्यन्तर तप भले ही प्रकट में दिखाई न दे किन्तु आत्मशुद्धि की दृष्टि से उसका बहुत अधिक महत्व है। मोक्ष . मोक्ष, तत्वों में नौवाँ तथा आखिरी तत्व है। आध्यात्मिक दृष्टि से भी यह साधना का चरम बिन्दु है। मोक्ष का सीधा अर्थ है- समस्त कर्मो से मुक्ति। तात्विक दृष्टि से कहा जाय, तो आत्मा का अपने शुद्ध स्वरुप में सदा के लिए स्थिर हो जाना ही मुक्ति या मोक्ष है।
निर्जरा की व्याख्या में बताया गया है कि अंशरुप में आत्मा पर से कर्ममल का दूर हटना निर्जरा है। और यहाँ पर आत्मा से कर्ममल सर्वथा दूर हो जाते हैं, तो उसे मोक्ष कहा जाता है। अर्थ हुआ कर्मों से आंशिक मुक्ति निर्जरा है और सर्वथा मुक्ति मोक्ष है। ___ मोक्ष या मुक्ति कोई स्थान या वस्तुविशेष नहीं है, किन्तु आत्मा का अपना शुद्ध, अधिकारी चिन्मयस्वरुप ही मुक्ति हैं। जब तक कर्म पूर्णरुप से क्षय नहीं होते, तब तक यह शुद्ध रुप स्वरुप कर्मों से आवृत्त रहता है, जैसे बादलों से सूर्य । किन्तु कर्मों के समस्त आवरण हटते ही आत्मा का शुद्ध रुप प्रकट हो जाता है, जैसे बादलों के हटने से सूर्य अपनी सहस्रों किरणों के साथ चमकने लग जाता है। सूर्य पर बादल पुनः आ सकते हैं, किन्तु आत्मा एक बार कर्मयुक्त होने के बाद फिर कभी कर्मों से आवृत नहीं हो सकता।
मोक्ष आत्मा के विकास की पूर्ण अवस्था है। चूंकि पूर्णता में कोई भेद नहीं होता, इसलिए मोक्ष का कोई भेद और प्रकार नहीं है। मोक्ष के जितने भी भेद बताये गए हैं, वे सब मोक्षप्राप्ति के साधनस्वरुप तथा अवस्थाभेद के कारण बताये गए हैं, वे भेद पूर्व अवस्था की दृष्टि से ही हैं। आध्यात्मिक समता और समानता का अखण्ड साम्राज्य मोक्ष में ही
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