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________________ तत्वों की संख्या अब प्रश्न यह है कि तत्व कितने हैं। इस प्रश्न का उत्तर विभिन्न ग्रन्थों में विभिन्न शैली से दिया गया है। संक्षेप और विस्तार की अपेक्षा मुख्य रुप से तत्व-प्रतिपादन की तीन शैली हैं (1) पहली शैली के अनुसार तत्व दो हैं-जीव और अजीव (2) दूसरी शैली के अनुसार तत्वों की संख्या सात गिनाई जाती है (१) जीव, (२) अजीव, (३) आसव, (४) बन्ध, (५) संवर, (६) निर्जरा और (७) मोक्ष। (३) तीसरी शैली में विस्तार से प्रतिपादन करके तत्वों की संख्या नौ बताई गई है- . (१) जीव, (२) अजीव, (३) पुण्य, (४) पाप, (५) आम्रव, (६) बंध, (७) संवर, (८) निर्जरा और (६) मोक्ष। ___पहली दूसरी शैली प्रधान रुप से दर्शन ग्रन्थों में मिलती है, और तीसरी शैली आगम ग्रन्थों में । आगम तथा तत्सम्बन्धी ग्रन्थों में नवतत्व अथवा नवपदार्थ के नाम से तत्वों का विस्तृत वर्णन किया गया है। जीव-अजीव नवतत्व में सबसे पहला तत्व 'जीव' है। जीव की परिभाषा करते हुए उत्तराध्ययन सूत्र में बताया है-'जीवो उक्ओग-लक्खणो' जीव का मुख्य लक्षण, उपयोग = ज्ञान-चेतना है। अर्थात् जिसमें ज्ञान है, वह जीव है। जीव को चैतन्य भी इसीलिए कहते हैं कि उसमें सुख-दुख, अनुकूलता-प्रतिकूलता आदि की अनुभूति करने की क्षमता है। चूंकि उसमें ज्ञान है, अतः वह अपने हित-अहित का अवबोध कर सकता है। उपर्युक्त स्वरुप के विपरीत जिसमें ज्ञान-चेतना नहीं है, वह जैनत्व की झांकी (94) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001349
Book TitleJainatva ki Zaki
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1998
Total Pages202
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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