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________________ विज्ञान की चतुर्मुखी उन्नति ने मानव जीवन के लिए हर प्रकार के मुख की सामग्री पैदा कर दी है । फिर भी राष्ट्र के जीवन में कविता ने सदा से एक ऐसा उच्च स्थान पा रखा है, जिसकी पूर्ति और किसी प्रकार से नहीं हो सकती । यूरोप के कितने ही देश वहाँ के कवियों और लेखकों द्वारा ही उन्नत हुए हैं। अंग्रेजी भाषा में कई कविताएँ ऐसी पढ़ने में आती हैं कि जिनसे हृदय सहसा फड़क उठता है और एक भारतीय हृदय में यही भाव पैदा होता है कि ऐसी कविता हमारी भाषा में भी क्यों न हो ? मुझे हिन्दी कविताओं के अधिक पढ़ने का अवसर नहीं मिला । जो कुछ भी मेरे देखने में आया है, उस पर से मैं तो यही समझा हैं कि पहले के कवि क्या तो अधिकतर धार्मिक विषयों पर अच्छा लिखते थे या कल्पित विषयों पर । कल्पित विषयों के सम्बन्ध में मुझे हिन्दी कवियों के प्रति वही शिकायत है, जो उर्दू कवियों के प्रति है । मेरा आशय यह है - प्रायः कविता में अस्वाभाविकता ( Artificiality ) आ जाती थी, जिससे हृदय पर कोई स्थायी प्रभाव (Lasting Effect ) नहीं हो पाता था । यदि कहीं उपमा की आवश्यकता हुई, तो ऐसी उपमा दी गई, जो नामुमकिन की हद पर पहुँच गई । इसका परिणाम आखिरकार यह हुआ कि उच्च श्रेणी की कविता इने-गिने थोड़े से विद्वानों तक ही सीमित रह गई और साधारण मनुष्य कविता के क्षेत्र से वंचित ही रह गए । यह मेरी अपनी व्यक्तिगत सम्मति है, सम्भव है, इसमें कुछ त्रुटि भी हो । अब कविता की प्रणाली में परिवर्तन हो चला है । उदाहरणार्थं बाबू मैथिलीशरण गुप्त की कविता की शैली वर्तमान युग के पाठकों को कुछ अधिक रुचिकर है । साधारण शब्द उच्च [ छह ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001348
Book TitleKavyanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1989
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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