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________________ भूमिका अगर इस 'काव्य' की भूमिका हिन्दी के किसी प्रसिद्ध विद्वान की लेखनी द्वारा लिखी जाती, तो इन कविताओं के महत्त्व का यथार्थ वर्णन हो सकता था। परन्तु, उदार हृदय मुनिश्री ने यह कार्य सौभाग्यवश मुझ जैसे एक 'अल्पज्ञ' व्यक्ति के सुपुर्द कर दिया है। मुझे यह स्वीकार करने में तनिक भी संकोच नहीं है कि मैं हिन्दी कविता के नियमोपनियमों के विषय में कुछ नहीं जानता। तो भो इतना तो अवश्य कह सकता हूँ कि-प्रस्तुत पुस्तक में मुनिजी ने हृदय की उदारता का, दुखितों व दलितों के प्रति सहानुभूति का, और देश, जाति एवं धर्म के प्रेम का बड़े ही सरस एवं हृदय ग्राही शब्दों में परिचय दिया है। वर्तमान समय भारतवर्ष के इतिहास में Period of Renaissance and Reformation कहलाएगा। लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व यूरोप में भी इसी प्रकार का समय आया था। कहा जाता है कि- उस समय के मनुष्यों में एक प्रकार की खलबली - सी मच गई थी, मानसिक हलचल हो गई थी, साधारण - से - साधारण मनुष्य भी सीधी तरह से बिना सोचे - समझे हर प्रकार की प्राचीन बात पर अन्ध - विश्वास न करके स्वयं उसकी सत्यता का अनुसन्धान करने लग गए थे। परिणाम यह हुआ कि यूरोप में बड़े - बड़े विद्वान्, राजनीतिज्ञ, वैज्ञानिक, दार्शनिक, कवि, लेखक, धर्मात्मा और शूरवीर पैदा हुए-फलस्वरूप अल्प समय में ही यूरोप की चाल - ढाल बदल गई। हमारे देश में भी कुछ थोड़े - बहुत अन्तर के साथ वैसा ही समय आजकल दिखाई देता है। [पाँच ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001348
Book TitleKavyanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1989
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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