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पाप की घटाएँ
पाप की काली घटाएँ छा रही संसार में । सूता कुछ भी नहीं अज्ञान के अन्धकार में ॥ १ ॥
अधखिले फूलों से कोमल बालकों के व्याह रचा । बन्द करते हो ! कुल-क्षय हेतु शयनागार में ।।
पाप की काली घटाएँ छा रही संसार में ||२॥ मौत के मेहमान बूढ़े मोड़ बाँधे शान से । बाल विधवा दें बिठा व्यभिचार के बाजार में ॥
पाप की काली घटाएँ छा रही संसार में ||३॥ रंडियों के चरन च में, थैलियाँ अर्पण करें । धर्मपत्नी को रखें नित ठोकरों की मार में ॥
पाप की काली घटाएँ छा रही संसार में ॥४॥ गर्दनें कटती धड़ाधड़ पूज्य गौ माताओं की आह चबा जाते नराधम नित्य के आहार में ।।
पाप की काली घटाएँ छा रहीं संसार में || ५ ॥ शीश भट फोड़े, अछूतों से अगर पल्ला भिड़े । बिल्लियों कुत्तों से लेकिन मुँह चटाते प्यार में ॥
पाप की काली घटाएँ छा रही संसार में ॥६॥ पाप का ताण्डव 'अमर' चारों तरफ ही हो रहा । डगमगाती धर्म - नौका बह चली मंझधार में ॥
पाप की काली घटाएँ छा रही संसार में ॥७॥
नारनौल, पर्युषण, १९९३
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