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________________ समाज और संस्कृति स्पष्ट करते हुए कहा कि "जिस दवा में मांस, शराब आदि अशुद्ध एवं त्याज्य वस्तुएँ मिली रहती हैं, उसे हम ग्रहण नहीं कर सकते ।" मेरी बात को सुनकर डाक्टर हँसा और कहने लगा-“महाराज ! आप तो बड़ी दूर की बातें सोचते हैं, हम तो शरीर को सबसे अधिक महत्व देते हैं । शरीर से बढ़कर अन्य कुछ नहीं है । इस शरीर की रक्षा के लिए मांस और शराब तो क्या अन्य बुरी से बुरी वस्तु भी ग्रहण करनी पड़े, तो हम कर सकते हैं । शरीर है तो सब कुछ है, नहीं तो कुछ भी नहीं ।" मैंने डाक्टर से कहा-महत्व शरीर का नहीं है, शरीर रूपी मन्दिर में रहने वाला आत्म-देवता ही सबसे बड़ा है । आत्म-देव के अस्तित्व से ही शरीर, शरीर है अन्यथा यह शव है । शरीर एक साधन हो सकता है, किन्तु वह हमारे जीवन का साध्य नहीं बन सकता । इसलिए शरीर ही सब कुछ नहीं है, बल्कि शरीर में रहने वाला यह चैतन्य देव ही सब कुछ है । जितनी चिन्ता हम शरीर की करते हैं, उतनी आत्मा की कहाँ कर पाते हैं ? यह शरीर तो जड़ है, कभी बनता है और कभी बिगड़ता है, किन्तु चैतन्य देव आत्मा, जो न कभी जन्मा है और न कभी जिसका मरण होगा, वही हमारे जीवन का साध्य होना चाहिए । जब हम शरीर पर आसक्ति करते हैं, तभी हम ऐसा कहते हैं, कि यह शरीर ही सब कुछ है । यह अविवेक ही वस्तुतः हमारे पतन का मुख्य कारण है । आसक्ति को दूर करना ही हमारे जीवन की साधना है । डाक्टर ने मेरी इन सब बातों को गम्भीरता के साथ सुना और अन्त में बोला कि "बात आपकी ठीक है । चैतन्य देव ही हम सबका साध्य होना चाहिए । उसके रहने पर ही शरीर का अस्तित्व है । अब मैं आपको ऐसी दवा दूँगा, जिसमें कोई अपवित्र वस्तु मिली हुई न होगी ।" डाक्टर मेरे अभिप्राय को समझ चुका था । ___ मैं आपसे मोह और आसक्ति की बात कह रहा था । जिस समय मनुष्य के मन में मोह अथवा आसक्ति उत्पन्न होती है, उस समय वह न्याय-अन्याय कुछ नहीं देखता । मनुष्य की आसक्ति का सबसे बड़ा केन्द्र है–सम्पत्ति और धन । धन और वैभव के लिए मनुष्य संसार का बड़े से बड़ा पाप कर सकता है । धन के लिए वह हिंसा कर सकता है, धन के लिए वह असत्य बोल सकता है और धन के लिए वह चोरी भी - - ४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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