SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्यात्म-साधना कर सकता है । कांचन और कामिनी ये दोनों संसार के सबसे बड़े बन्धन हैं । संसार में जितने भी संघर्ष होते हैं, जितने भी युद्ध होते हैं, वे सब कांचन और कामिनी के लिए ही होते हैं । मुझे एक बार पेशावर का रहने वाला एक व्यक्ति मिला । बात यह उस समय की है, जबकि देश का बँटवारा हो चुका था । भारत का एक भाग पाकिस्तान के रूप में जा चुका था । एक दिन वह व्याख्यान में आया और बड़ी भावुकता से व्याख्यान सुनता रहा । व्याख्यान की समाप्ति पर वह मेरे समीप आया और बोला-"महाराज ! मैं बड़े कष्ट में हूँ । बड़े सद्भाग्य से आप जैसे सन्तों के मुझे दर्शन हुए हैं ।" मैंने पूछा-'क्या कष्ट है आप पर, अश्रुपूर्ण क्षेत्रों से मेरी ओर देखते हुए उसने कहा-“महाराज ! मेरे ऊपर बड़ा अन्याय और बड़ा अत्याचार हुआ है । मेरे ही सामने पाकिस्तानी गुण्डों ने मेरे पिता को कत्ल कर दिया, मेरी माँ की हत्या कर दी, मेरी सुन्दर पत्नी की मेरे सामने बेइज्जती की और उठा कर ले गये । मेरी बहिन के साथ मेरे देखते हुए बलात्कार किया गया । मेरे भरे- घर हुए को लूट लिया गया । कुछ भी तो नहीं बचा । आज भूखों मरता हूँ । कोई थोड़ी बहुत सहायता कर दे तो बड़ी कृपा हो ।” उसकी बातों को सुनकर मेरा मन दुःख और ग्लानि से भर गया । मैंने कहा-"यह सब कुछ अच्छा नहीं हुआ । कोई भी भावना-शील व्यक्ति इस पापाचर की बात सुनकर दुःखित हुए बिना नहीं रह सकता । पर मैं तुमसे एक बात पूछना चाहता हूँ, कि जब तुम्हारी प्रिय पत्नी और बहिन पर यह अन्याय और अत्याचार हो रहा था, तब तुमने प्रतिकार क्यों नहीं किया ? अपने प्राणों को बचा कर वहाँ से क्यों भाग खड़े हुए ? प्राणों के प्रति इतना व्यामोह ? धिक्कार है, इस जीवन को । आखिर तुम्हारे इस कायर जीवन का क्या उपभोग होगा । तुम्हारे माता-पिता की हत्या तुम्हारे सामने हुई । तुम्हारी पत्नी का अपहरण तुम्हारे सामने हुआ । तुम्हारी आँखों के सामने तुम्हारी बहिन की बेइज्जती होती रही, फिर भी तुम्हें जोश नहीं आया ? उन निर्मम और निर्दयी लोगों से न्यायोचित संघर्ष करने की भावना तुम्हारे मन में पैदा नहीं हुई ? तुम्हारे मन में भावना पैदा हुई, केवल अपने क्षणभंगुर तुच्छ जीवन के रक्षण की । इससे कहीं अधिक अच्छा होता, कि तुम उस निर्मम और निर्दय अत्याचार से जूझ पड़ते, किन्तु तुम्हारे जीवन के व्यामोह ने तुम्हें %3 ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy