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________________ समाज और संस्कृति अभी तुम कुछ देर पहले गाली किसे दे रहे थे ? कुछ सोचकर वह बोला–हाँ ठीक है, मैं अभी एक स्वप्न देख रहा था । मैंने स्वप्न में देखा, मेरी मेरे भाई से लड़ाई हो गई है और मैं गाली अन्य किसी को नहीं, अपने भाई को ही दे रहा था । इस प्रसंग पर से आप यह जान सकते हैं, कि निद्रा की दशा में भी मनुष्य अपने संकल्पों से विमुक्त नहीं हो पाता । जागृत अवस्था में ही नहीं, स्वप्नावस्था में भी वह लड़ता है, झगड़ता है और गाली देता है । मेरे कहने का अभिप्राय यह है, कि मनुष्य जीवन का उत्थान और पतन उसके मन के संकल्प के अनुसार ही होता है । मनुष्य अपने संकल्प के अनुसार ही रावण बनता है, और मनुष्य अपने संकल्प के अनुसार ही राम बनता है । मनुष्य के मन का अशुभ संकल्प उसे रावण बना देता है,तो मनुष्य के मन का शुभ संकल्प उसे राम बना देता है । मनुष्य के जीवन की जय-पराजय उसके शुभ एवं अशुभ संकल्पों पर ही आधारित है । मनुष्य के संकल्प में बड़ी ताकत है । __ मैं आपसे यह कह रहा था, कि मनुष्य के विचार में अमृत भी है, और मनुष्य के मन में विष भी है । विष और अमृत कहीं बाहर नहीं रहते । वे मनुष्य के विचार एवं संकल्प में ही रहते हैं । किसी से प्रेम करना यह भी एक विचार है और किसी से घृणा करना भी एक विचार ही है । परन्तु यह निश्चित है, कि घृणा एक विकल्प है और प्रेम एक संकल्प है । घृणा की अपेक्षा, प्रेम की शक्ति अधिक होती है । क्रोध और शान्ति के द्वन्द्व युद्ध में, क्रोध पराजित हो जाता है और शान्ति की विजय होती है । यद्यपि क्रोध भी एक विचार है और शान्ति भी एक विचार है; किन्तु एक अशुद्ध है और दूसरा शुद्ध है । विष और अमृत के संघर्ष में, विजय सदा अमृत को ही मिलती है । आपने वह कहानी सुनी होगी, जिसमें बताया गया है कि अमृतयोगी भगवान महावीर ने एक भयंकर दृष्टि-विष चण्डकौशिक सर्प का शान्ति और प्रेम के आधार पर उद्धार कर दिया था । भगवान महावीर बिहार-यात्रा करते-करते, जब उस विकट वन की ओर जाने लगे, जहाँ चण्डकौशिक सर्प रहता था, तब वहाँ पर रास्ते में खड़े हुए चरवाहों और ग्वाल बालों ने भगवान को उधर जाने से रोका और बोले-इधर एक भयंकर सर्प रहता है, आप इधर से न जाकर, उधर से चले जाइए । म्वाल बालों ने देखा, कि उनके इन्कार करने पर भी वह अमृत योगी संत उधर ही जा रहा है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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