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________________ मनुष्य की संकल्प-शक्ति सुरा और सुन्दरी से और भोग-विलास से ऊपर उठकर एक बात और सोच रहा था, वह थी त्याग की और वैराग्य की । उसने यादव जाति के सरदारों से कहा -यदि आप मेरी आज्ञा का पालन करना चाहते हैं, तो मेरी यही आज्ञा है, कि आप शीघ्र से शीघ्र मेरी दीक्षा की तैयारी करें, मैं शीघ्रातिशीघ्र भगवान नेमिनाथ के चरणों में पहुँचकर इस भोगमय जीवन को छोड़कर, त्यागमय जीवन अंगीकार करना चाहता हूँ । इसके अतिरिक्त न मेरी अन्य अभिलाषा है और न मेरी अन्य इच्छा है । आपने देखा, कि राज्य के सिंहासन पर बैठकर राजकुमार जिस रंगीनी दुनियाँ का स्वप्न लेते हैं, गजसुकुमार का जीवन उसका अपवाद है । इसका मुख्य कारण यही है, कि जिसके मन में अमृत है, वह विष की बात नहीं सोच सकता । जिसके मन में त्याग और वैराग्य की बात है, वह भोग विलास का संकल्प नहीं कर सकता । मैं आपसे मनुष्य के मन के संकल्प की बात कह रहा था । मनुष्य के मन के संकल्प कितने हैं ? उसकी सीमा का अंकन नहीं किया जा सकता । मनुष्य के मन की प्रत्येक इच्छा उसका एक संकल्प है । इच्छाएँ अनन्त हैं, इसलिए मनुष्य के मन के संकल्प भी अनन्त हैं । इस समग्र लोक को और इस समस्त ब्रह्माण्ड को भी यदि किसी एक मनुष्य के मन के संकल्पों से भरने का प्रयत्न किया जाए, तो यह समस्त लोक और समस्त ब्रह्माण्ड भर जाएगा, किन्तु मनुष्य के मन के संकल्प फिर भी शेष बचे रहेंगे । मनुष्य के मन के संकल्प और विकल्प इतने हैं, कि उनका कभी अन्त नहीं पाया जा सकता । जागते भी संकल्प और सोते भी संकल्प । क्या संकल्प की दुनियाँ का कहीं अन्त है ? एक बार एक सज्जन दर्शन करने के लिए मेरे पास आए । रात्रि को वह स्थानक में ही सो गए । दिन में थकावट के कारण और अपनी लम्बी यात्रा के कारण, उसे शीघ्र ही नींद आ गई । सोने के बाद नींद में वह बड़बड़ाने लगा और फिर गाली देने लगा । सहसा मेरी नींद खुल गई । मैंने सोचा, किसकी किससे लड़ाई हो रही है, इस मध्य रात्रि में कौन किस को गाली दे रहा है ? देखने पर पता चला कि अन्य कोई नहीं है, दर्शनों को आया हुआ सज्जन ही, नींद में बड़बड़ाता हुआ गाली दे रहा है । उससे पूछा गया कि क्या बात है, किससे लड़ रहे हो, क्यों लड़ रहे हो, और गाली क्यों दे रहे हो ? वह बोला-महाराज श्री ! क्या बात है ? उल्टा महाराज से ही पूछने लगा, कि क्या बात है ? मैंने धीरे से पूछा, %3 - - - - १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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