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________________ समाज और संस्कृति % 3D प्रकाश के समक्ष खड़े रहने की शक्ति अन्धकार में है ही नहीं । इसी प्रकार आत्म-जागरण की ज्योति प्रकट होते ही अनन्त-अनन्त जन्म के कर्म भी क्षण भर में ही नष्ट हो सकते हैं । इसमें जरा भी सन्देह की बात नहीं है । गजसुकुमार ने कितने जन्मों के कर्मों को अल्पकाल की साधना से ही नष्ट कर दिया था । अर्जुन मालाकार के कर्म कितने घोर थे, केवल अल्प साधना से ही उसने अपने कर्मों को कितनी तीव्रता के साथ नष्ट किया ? मानव मन के किसी भी परापेक्षी विकल्प में यह शक्ति नहीं है, कि आत्मा के स्वोन्मुखी संकल्प के सामने वह खड़ा रह सके । कर्म कितना भी प्रबल क्यों न हो, वह कितना भी पुराना क्यों न हो. किन्तु आत्म-जागरण की ज्योति के समक्ष वह टिक नहीं सकता है । आत्मा में अनन्त शक्ति है, उसमें परमात्मा होने की भी शक्ति है, किन्तु तभी जब कि उसे अपने पर विश्वास हो, अपनी शक्ति पर आस्था हो, अपने आध्यात्मिक पुरुषार्थ में निष्ठा हो । कर्म बलवान् है, यह सत्य है, क्योंकि तभी तो वे जीव को नाच नचाते हैं । पर याद रखिए, कर्म को उत्पन्न करने वाला यह आत्मा ही है । आत्मा की शक्ति के समक्ष कर्म की शक्ति अवश्य ही हीन-कोटि की है । आत्मा में अपने आपको बाँधने की शक्ति भी है और इस आत्मा में अपने को मुक्त करने की शक्ति भी है । आत्मा न जाने कितनी बार नरकों में गया और न जाने कितनी बार स्वर्गों में गया, तथा न जाने कितनी बार यह पशु-पक्षी बना और न जाने कितनी बार इसने मानव-तन पाया । जन्म और मरण का यह खेल आज का नहीं अनन्त-अनन्त काल का है । इस खेल को बनाने वाला भी आत्मा है और इस खेल को मिटाने वाला भी यह आत्मा ही है । जब यह आत्मा अज्ञान और मिथ्यात्व आदि विकल्पों से अभिभूत हो जाता है, तब यह अपने स्वरूप को भूल बैठता है । अपने स्वरूप को भूल बैठना ही सारी बुराइयों की जड़ है । आत्मस्वरूप को समझना, यही हमारी साधना है । जब तक साधक अपने आपको नहीं समझता है, तब तक न वह अपने मन के विकल्पों पर विजय प्राप्त कर सकता है और न वह कर्म की घनघोर घटाओं को ही छिन्न-भिन्न कर सकता है । प्रत्येक साधक के हृदय में. यह दृढ़ विश्वास होना ही चाहिए, कि मैं अनन्त शक्ति सम्पन्न हूँ और मुझमें आज से ही नहीं, अनन्तकाल से अनन्त शक्ति रही है । १८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001344
Book TitleSamaj aur Sanskruti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Culture
File Size15 MB
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