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मनुष्य स्वयं दिव्य है
असफलता मेरे पल्ले पड़ती है । मेरे क्रोधी स्वभाव के कारण, मेरी पत्नी भी मुझसे डरती है और मेरे बच्चे भी मेरी शक्ल देखते ही दूर भाग जाते हैं । मैं जब अपने घर में प्रवेश करता हूँ, तब मेरे परिजन और परिवार वाले यह समझते हैं, कि घर में यमराज आ गया है । मैं अपने ही घर में यमराज बन गया हूँ । मेरे क्रोध के कारण मेरा घर का स्वर्गीय सुख नारकीय दुःख में बदल गया है । इस आफत से मैं अति परेशान हूँ । क्योंकि मेरे अपने ही घर में, मेरे अपने ही स्वभाव ने, मुझे भय का देवता, यमराज बना दिया है । इस दुनिया में मेरे से अधिक अभागा और दुःखी व्यक्ति अन्य कौन होगा ? जिसकी इज्जत न अपने घर में है और न बाहर में है । जिस इन्सान की इज्जत अपने घर में नहीं, बाहर में भी उसकी इज्जत कैसे हो सकती है ? मुझे कोई ऐसा मंत्र दीजिए, जिससे मेरा क्रोध दूर हो जाए । बस, इसके अतिरिक्त मुझे आपसे न कुछ माँगना है और न कुछ कहना ही है ।"
मैंने उस व्यक्ति की बात को बड़ी गम्भीरता के साथ सुना । अपने ही क्रोध के कारण उसकी अपने ही परिवार में जो स्थिति बन गई थी, वह बड़ी ही दयनीय थी । मैंने उससे कहा-"तुम्हारे अन्दर क्रोध उत्पन्न करने वाला कौन है ?" उसने समझदारी के साथ कहा-“दूसरा कोई नहीं, मैं स्वयं हूँ ।" मैंने कहा-“जब क्रोध को उत्पन्न करने वाले तुम स्वयं हो, तो क्रोध को दूर करने वाला अन्य कौन हो सकता है ? क्रोध को दूर करने का संसार में अन्य कोई मंत्र नहीं है । किसी भी मंत्र में अथवा किसी भी देवता में यह शक्ति नहीं है, कि वह तुम्हारे मन के क्रोध को दूर कर सके । याद रखो, तुम्हारे मन का विवेक ही तुम्हारे मन के क्रोध को दूर कर सकता है । क्रोध को जीतने का एक ही उपाय है-जब-जब तुम्हारे हृदय में क्रोध आए, तब-तब तुम शान्ति का चिन्तन करो, शान्ति का विचार करो । शान्ति के अमृत से ही क्रोध के विष को दूर किया जा सकता है । भगवान महावीर ने कहा है-"उवसमेण हणे कोहं ।" उपशम भाव से क्रोध को दूर करो । शान्ति से क्रोध को जीतो । अपने मन को सदा शान्त विचारों से भरे रहो । जब तुम्हारा मन शान्त विचारों से भरा रहेगा, तब उसमें क्रोध को आने का अवकाश ही नहीं मिलेगा । शुभ विचार से अशुभ विचार को दूर किया जा सकता है । यही सबसे बड़ा मंत्र है और यही सबसे बड़ा देवता है । शुभ से अशुभ को नष्ट करने की कला जिसने सीख ली, वह व्यक्ति कभी भी
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