________________
मानव जीवन की सफलता
हो, विज्ञान की हो । उस व्यक्ति से विवेक विकल आत्मा को लाभ न होकर, हानि ही होती है । उसका स्वयं का भी पतन ही होता है और दूसरों को भी पतन की ओर ले जाता है, जिससे उसे शान्ति नहीं मिल पाती । __मैं आपसे कह रहा था, कि भगवान महावीर ने राजकुमारी जयन्ती के प्रश्न का जो उत्तर दिया, वह सर्वथा यथार्थ ही था । अनेकान्त-दृष्टि से भगवान का यह बहुत ही सुन्दर समाधान है, कि बलवान् होना भी अच्छा है और निर्बल होना भी अच्छा है । अभिप्राय यह है, कि विवेकशील का बलवान होना अच्छा है और विवेक-विकल का निर्बल होना अच्छा है । विवेकशील आत्मा के पास किसी भी प्रकार का बल क्यों न हो, वह उसका प्रयोग आत्म-कल्याण एवं जन-कल्याण के लिए ही करता है । इसके विपरीत विवेक-विकल आत्मा का हर प्रकार का बल आत्मविनाश और परविनाश के लिए ही होता है । आपको यह मालूम करना चाहिए, कि शास्त्र और शस्त्र किसके पास हैं ? शास्त्र और शस्त्र के पहले यदि सुन्दर बुद्धि का योग नहीं है, तो वह आत्मा इन दोनों का दुरुपयोग ही करता है । संसार में हम देखते हैं कि शक्ति का भी दुरुपयोग होता है, ज्ञान का भी दुरुपयोग होता है और धन का भी दुरुपयोग होता है । इस सम्बन्ध में एक आचार्य ने कहा है
“विद्या विवादाय धनं मदाय,
शक्तिः परेषां परिपीडनाय । खलस्य साधोर्विपरीतमेतत्,
ज्ञानाय दानाय च रक्षणाय ।" नीतिकार आचार्य का कहना है, कि जिस व्यक्ति की विद्या विवाद के लिए होती है, जिस व्यक्ति का धन अहंकार के लिए होता है और जिस व्यक्ति का बल दूसरों को पीड़ा देने के लिए होता है, वह व्यक्ति खल एवं दुष्ट होता है । जिस व्यक्ति की विद्या विवेक के लिए होती है, जिस व्यक्ति का धन दान के लिए होता है तथा जिस व्यक्ति का बल दूसरों के संरक्षण के लिए होता है, वह व्यक्ति साधु एवं सज्जन होता है । इस आचार्य ने अपने इस एक ही श्लोक में मानव-जीवन का सम्पूर्ण मर्म खोलकर रख दिया है । आचार्य ने मानव-जीवन के रहस्य को इस एक ही पद्य में समाहित कर दिया है, जिसे पढ़कर और जानकर प्रत्येक
६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org