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समाज और संस्कृति
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सकता । उसे आत्मबोध एवं आत्मविवेक होना कठिन होता है । मैं कौन हूँ ? इस प्रश्न का उत्तर यदि इस रूप में आता है, कि मैं शरीर हँ. मैं इन्द्रिय हूँ और मैं मन हूँ, तो समझना चाहिए कि उसे आत्मबोध हुआ नहीं है । जिस व्यक्ति को आत्मा का यथार्थ बोध हो जाता है, वह तो यह समझता है, कि मैं जड़ से भिन्न चेतन हूँ । यह शरीर पंच भूतात्मक है, इन्द्रियाँ पौद्गलिक हैं, मन भौतिक है । इस प्रकार आत्मा को जो इन सबसे भिन्न मानकर चलता है और आत्मा के दिव्य स्वरूप में जिसका अचल विश्वास है, भगवान की भाषा में वही आत्मा बलवान् है । जिस व्यक्ति को आत्मा और परमात्मा में विश्वास होता है, वह सदा बलवान् ही रहता है । उसके दुर्बल होने का कभी प्रश्न ही नहीं उठता । एक पाश्चात्य विद्वान ने कहा है- "Trust in God and mind your bussiness.'' अपने हृदय में सदा परमात्मा का स्मरण रखो और अपने कर्तव्य का सदा ध्यान रखो । जो व्यक्ति प्रभु का स्मरण का करता है
और अपने कर्त्तव्य को याद रखता है, वह कभी निर्बल नहीं हो सकता । निर्बल वही है, जिसे आत्मा में विश्वास न होकर भौतिक साधनों में विश्वास होता है । मैं आपसे कह चुका हूँ, कि बल एवं शक्ति के अनन्त रूप हैं। उनमें दो रूप ये भी हैं. शस्त्र बल और शास्त्र-बल । संसार में शस्त्र-बल भयंकर है, किन्तु उससे भी अधिक भयंकर है, शास्त्र-बल । जिस व्यक्ति के हृदय में दया और करुणा नहीं है, वह अपने शास्त्र बल से अन्याय और अत्याचार ही करता है । जिस व्यक्ति के हृदय में बुद्धि और विवेक नहीं है, वह सुन्दर से सुन्दर शास्त्र का भी दुरुपयोग कर सकता है । जो व्यक्ति दुराचार और पापाचार में संलग्न है, उसका शास्त्र-बल भी शस्त्र-बल से अधिक भयंकर है । यदि हम भारतीय दर्शन के ग्रन्थ उठाकर देखें, तो मालूम होगा, कि शास्त्रों की लड़ाई शस्त्रों की लड़ाई से कम भयंकर नहीं रही हैं । शस्त्र की लड़ाई तो एक बार समाप्त हो भी जाती है, लेकिन शास्त्रों की लड़ाई तो हजारों-लाखों वर्षों तक चलती है । शास्त्रों की लड़ाई एक दो पीढ़ी तक नहीं, हजारों-लाखों पीढ़ियों तक चलती रहती है । शस्त्र की लड़ाई समाप्त हो सकती है, किन्तु शास्त्र की लड़ाई जल्दी समाप्त नहीं होती । अधर्मशील व्यक्ति शस्त्र के समान शास्त्र का भी दुरुपयोग करता है । मैं आपसे कह रहा था, कि विवेक-विकल आत्मा के लिए सभी प्रकार के बल अभिशाप रूप होते हैं । चाहे वह बल और शक्ति शास्त्र की हो, शस्त्र की हो, ज्ञान की
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