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स्वोपज्ञरहस्यवृत्तिविभूषितं
ल ल ए ऐ ओ औ ॥४॥ - एक-द्वि-त्रिमात्रा ह्रस्व-दीर्घ-प्लुताः ।।१।५॥
मात्रा कालविशेषः । एक-द्वि-त्र्युच्चारणमात्रा औदन्ता वर्णा यथासङ्ख्यं ह्रस्व-दीर्घ-प्लुतसंज्ञाः स्युः । अ इ उ ऋ ल, आ ई ऊ ऋ लु, ए ऐ ओ औ, आ ३ ई ३ ऊ ३ इत्यादि ।।५।।
अनवर्णा नामी ।शश६॥ अवर्णवर्जा औदन्ता वर्णा नामिसंज्ञाः स्युः । इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ? ए ऐ ओ औ ॥६॥
लूदन्ताः समानाः ।।१७॥ लकारावसाना वर्णा: समाना: स्युः । अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल
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___ए-ऐ-ओ-औ सन्ध्यक्षरम् ।।१।८॥ ए ऐ ओ औ इत्येते वर्णाः सन्ध्यक्षराणि स्यु: ।।८।।
अं अः अनुस्वार-विसौ ।११९॥ अकारावुच्चारणार्थो । अं इति नासिक्यो वर्ण: अ: इति च कण्ठ्यो यथासङ्ख्यमनुस्वार-विसर्गौ स्याताम् ।।९।।
कादिर्व्यञ्जनम् ।।१।१०॥ कादिवर्णो हपर्यन्तो व्यञ्जनं स्यात् । क ख ग घ ङ, च छ ज झ ञ, ट ठ ड ढ ण, त थ द ध न, प फ ब भ म, य र ल व, श ष स, ह ||१०||
अपञ्चमान्तस्थो धुट् ।११११११॥ वर्गपञ्चमा-ऽन्तस्थावर्जः कादिर्वर्णो धुट् स्यात् । क ख ग घ, च छ ज झ, ट ठ ड ढ, त थ द ध, प फ ब भ, श ष स, ह ।।११।।
पञ्चको वर्गः ।।१।१२॥ कादिषु वर्णेषु यो य: पञ्चसङ्ख्यापरिमाणो वर्णः स वर्ग: स्यात् । क ख ग घ ङ, च छ ज झ ञ, ट ठ ड ढ ण, त थ द ध न, प फ ब भ म
॥१२॥
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