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भारतीय दर्शन के विशेष सिद्धान्त ८३ । जड़वाद अथवा भौतिकवाद :
यथार्थ में जिसको जड़वाद कहा जाता है, आधुनिक दर्शनकार उसे भौतिकवाद अथवा वैज्ञानिक-भौतिकवाद कहते हैं। यूनान में इस जड़वाद अथवा भौतिकवाद का जन्म थेल्स की विचार-धारा के साथ ही हुआ था। भारत में इस विचार-धारा का प्रवर्तक चार्वाक-सम्प्रदाय माना जाता है। चार्वाक के अनुसार देखना ही विश्वास करना है । इस आधार पर जड़ वस्तु ही प्रत्यक्ष के योग्य है, क्योंकि वह देखी जा सकती है। इस जड़वादी-दर्शन में उन तथ्यों पर अथवा तत्त्वों पर विचार नहीं किया जाता, जो इन्द्रिय ग्राह्य न हों। जैसे आत्मा, ईश्वर, पुनर्जन्म, परलोक, स्वर्ग और नरक आदि । जड़वादी दार्शनिक लोगों की दृष्टि में इस प्रकार के तत्त्व विश्वास के योग्य नहीं हैं। उनका कहना है, कि यह सब कपोल कल्पना है, प्रताप है, अथवा मूर्खता के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है । जड़वादी चार्वाक का कहना है, कि पृथ्वी, जल, तेज और वायु-ये ही चार निर्णायक तत्त्व हैं। भारतीय-दर्शन में इसी को जड़वाद की मूल सामग्री कहा गया है। सामान्य रूप से जड़वाद वह तत्त्वज्ञान है, जिसमें संसार और समाज दोनों से संबंधित तत्त्वों पर नयो दृष्टि से विचार किया गया है। यहां तत्त्व-ज्ञान का आशय है, कि जीवन और जगत की वास्तविकता का निश्चय हो जाना । प्रमाण के द्वारा भलीभांति परखने के बाद जो वस्तु अबाधित रूप में सिद्ध हो सकती हो, जड़वाद में वही मुख्य तत्त्व है, और उसी को परमार्थ कहा गया है । जड़वादी तत्त्ववेत्ताओं ने इसी परमार्थ के वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत किया था। इस मान्यता के आधार पर ही भारतीय-दर्शनों में इसे जड़वाद अर्थात् भौतिकवाद कहा गया। जड़वाद का उद्देश्य :
जड़वाद का उद्देश्य क्या है ? इस सम्बन्ध में इतना ही कहा जा सकता है, कि जो कुछ वास्तविक है, उसी का विचार और विश्लेषण करना इसका मुख्य उद्देश्य रहा है। जो कुछ यहां प्रस्तुत न हो अथवा विद्यमान न हो, उस पर जड़वाद में विचार नहीं किया जाता। जड़वाद के अनुसार वेदनाशून्य अथवा ज्ञानशून्य पदार्थ ही जड़ हैं। उसका प्रतियोगी शब्द है-चेतन, जिसमें संवेदन एवं ज्ञान निहित रहता है। महाराष्ट्र के प्रसिद्ध विद्वान् लक्ष्मण शास्त्री जोशी ने अपनी मराठी पुस्तक जड़वाद तथा अनीश्वरवाद में जड़वाद की बड़ी सुन्दर व्याख्या की है। शास्त्री जी के शब्दों
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