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________________ प्रकाशकीय सन्मति ज्ञानपीठ से प्रकाशित उपाध्याय श्रद्धेय कवि श्री अमर मुनि जी महाराज का साहित्य सम्पूर्ण जैन समाज में अत्यन्त लोकप्रिय रहा है । साहित्य की विविध विधाओं जैसे निबन्ध, कहानी, गद्य, पद्य, गीत, कथा संस्मरण, समीक्षा आदि पर आपने सफलतापूर्वक लेखनी चलाई है। आपका प्रवचन साहित्य बहुत ही प्रभावक एवं सुन्दर रहा है ? आपके साहित्य को जैन अजैन आदि ने बहुत ही पसन्द किया है। उपाध्याय श्रीजी महाराज के साहित्य को पढ़कर अनेक पाठक उनके उपासक व प्रशंसक हो गये हैं, क्योंकि आपका साहित्य समाज के लिए बहुत ही उपयोगी रहा है। इधर उपाध्याय श्रीजी महाराज के निरन्तर अस्वस्थ रहने के कारण संस्था से नवीन प्रकाशन नहीं हो पा रहे हैं। परन्तु श्रद्धालु पाठकों की निरन्तर साहित्य की मांग को देखते हुए कुछ प्राचीन प्रकाशनों को पुनः प्रकाशित कराने का कार्य हाथ में लिया है। नूतन प्रकाशन प्रारम्भ करने से पूर्व प्राचीन प्रकाशनों के नवीन संस्करण ही प्रकाशित किये जा रहे हैं। पूज्य गुरुदेव राजगृह में विराजमान है। उनकी वृद्ध अवस्था तो है ही, साथ में उनका स्वास्थ्य भी अनुकूल नहीं रहता है । यही स्थिति नवीन प्रकाशनों के कार्य में बाधक है। परन्तु आपके साहित्य की मांग समाज में निरन्तर बढ़ती जा रही है। ऐसी स्थिति में पण्डित प्रवर पूज्य श्री विजय मुनि जो महाराज से इस दिशा में कार्य के लिए प्रार्थना की गई। प्रार्थना को स्वीकार करते हुए उन्होंने अध्यात्म प्रवचन का पहला भाग तथा दूसरा भाग तैयार कराकर प्रकाशित करा दिया है। इनमें दो विषय हैं ज्ञान-मीमांसा और आचारमीमांसा। ( ५ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001339
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1992
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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