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( ४ ) दार्शनिक तथा प्रखर तार्किक रहे हैं। पाठकों को इस सत्य अनुभूति का साक्षात्कार स्वतः अध्ययन से हो सकेगा। अतः इस विषय में अधिक लिखना, अर्थ-हीन होगा। शर्करा मधु है, कि कटु ? इस तथ्य का परिज्ञान वाणी से नहीं, रसना पर रखने से होगा।
__जैन परम्परा के महान् वाचक उमास्वाति की शाश्वत कृति सत्त्वार्थसूत्र के प्रथम अध्याय के प्रथम सूत्र पर वस्तुतः ये प्रवचन विस्तृत भाष्य हैं, जिनमें मोक्ष-तत्त्व के साधन भूत दर्शन, ज्ञान और चारित्र की व्याख्या की है । वीतराग भाषित तत्त्वों पर जो श्रद्धान होता है, वह दर्शन है । तत्त्वों का जो यथार्थ परिबोध होता है, वह ज्ञान है। श्रद्धा और ज्ञान के अनुसार तत्त्वों का जो आचरण है, वह चारित्र है। बौद्ध परम्परा की परिभाषा में इन तीनों को शील, समाधि और प्रज्ञा कहा गया है । वैदिक भाषा में कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग कहा जाता है। इन समस्त प्रवचनों में समन्वय तथा तुलनात्मक दृष्टि मुख्य है, जो गुरुदेव की अपनी एक खास विशेषता रही है, अपनी अलग पहचान है। महावीर जयन्ती
विजय मुनि १५ अप्रेल, १९६२ सन्मति ज्ञानपीठ जैन भवन, लोहामण्डी आगरा,
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