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________________ जैन दशन की तत्व-मीमांसा ३६ (ङ) जो पुद्गल इतना सूक्ष्म हो, कि इन्द्रियों द्वारा ग्रहण न किया जा सकता हो । जैसे कि कर्म - वर्गणा । (च) अति सूक्ष्म जैसे कर्म-वर्गणा से नीचे के द्वि-अणुक पर्यन्त पुद्गल स्कन्ध । परमाणु को व्याख्या : का अन्तिम विभाग - जिसका विभाग न हो सके, परमाणु कहा जाता है । वह शाश्वत है, परिणामी नित्य है । मूर्त है । रूप, रस, स्पर्श और गन्ध – ये चार गुण उसमें होते हैं । ये सभी गुण एक प्रदेश में रहते हैं । परमाणु पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु-इन चार धातुओं का कारण | पृथ्वी आदि के परमाणु मूल रूप में भिन्न-भिन्न नहीं है, जैसा कि वैशेषिक दर्शन मानता है । जैन दर्शन में, एक रस, एक वर्ण, एक गन्ध और दो स्पर्श होते हैं । इन परमाणुओं में से चिकना परमाण और रूखा परमाणु मिलकर द्वि- अणुक बनता है, और इसी प्रकार त्रि-अणुक आदि स्कन्ध बन जाते हैं । दो अंश स्निग्ध वाला अणु चार अंश स्निग्धता वाले दूसरे अणु के साथ मिल सकता है। तीन अंश रूक्षता वाला अणु पाँच अंश रूक्षता वाले अणु के साथ मिल सकता है । जीव द्रव्य : जीव दो प्रकार के हैं-संसारी और मुक्त | दोनों ही प्रकार के जीव अनन्त हैं । वे सभी चेतनावान् हैं. उपयोगवान् हैं । संसारी सदेह हैं और मुक्त अदेह हैं । संसार में रहने वाले जीवों के दश प्राण हैं । जो इन प्राणों से जीवित था, जीवित है और जीवित रहेगा, वह जीव है । ये दश प्राण हैं १. मनोबल २. वचन बल ३. काय बल ४. स्पर्शन ५. रसन ६. घ्राण ७. नेत्र श्रोत्र ८. ६. आयुष् १०. श्वास प्रश्वास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001339
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1992
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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