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अध्यात्म प्रवचन : भाग तृतीय
की कील चाक की गति में सहकारी तो होतो है, लेकिन गति में कारण नहीं होती, उस प्रकार काल द्रव्य, अन्य द्रव्यों के परिणमन में निमित्त भर होता है, कारण नहीं होता। व्यावहारिक काल गणना, यद्यपि जीव और पुद्गल के परिणमन पर ही आधार रखती है, परन्तु काल द्रव्य स्वयं, जीव और पुद्गल के परिणमन में कारणभूत है। व्यवहार काल क्षणभंगुर है, और निश्चय काल अनश्वर है। दिवस, मास, ऋतु, अयन और संवत्सर आदि काल के विभागों की परिकल्पना अन्य द्रव्यों के परिणमन से की जाती है । काल को भारत के अन्य दर्शनों ने भी स्वीकार किया है। केवल वेदान्त ही काल को मिथ्या मानता है। . पुद्गल द्रव्य :
पुद्गल के चार प्रकार है-स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु । सम्पूर्ण पिण्ड स्कन्ध होता है। उसका आधा भाग स्कन्ध देश होता है । उसका आधा भाग स्कन्ध प्रदेश होता है । जिसका दूसरा विभाग न हा सके, उस निरंश अंश को परमाणु कहा गया है। स्कन्ध के दो प्रकार होते हैं-बादर और सूक्ष्म । बादर वह होता है जो इन्द्रियों के गोचर हो सके । जो इन्द्रिय गोचर नहीं होता वह सूक्ष्म कहा जाता है । पुद्गल के छह वर्ग हो जाते हैं, जो इस प्रकार हैं
१. बादर-बादर २. बादर ३. सूक्ष्म बादर ४. बादर सूक्ष्म ५. सूक्ष्म ६. सूक्ष्म-सूक्ष्म
क) जो एक बार टूटने के बाद में जुड़ न सके । जैसे-- काष्ठ एवं प्रस्तर।
(ख) टूट कर अलग होने के बाद में जुड़ जाने वाला। जैसे-जल, घृत, तेल ।
(ग) जो देखने में स्थल हो, पर जिसको तोड़ा-फोड़ा न जा सके, जो किसी के पकड़ में न आ सके । धूप एवं प्रकाश ।
(घ) सूक्ष्म होते हुए भी जो इन्द्रिय गम्य होता है। जैसे रस, गन्ध एवं स्पर्श ।
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