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________________ जैन दर्शन की तत्त्व-मीमांसा ३३ हैं-रूप, रस, गन्ध और स्पर्श । पुद्गल को संख्या, संख्यात, असंख्यात और अनन्त है । शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थूलता, आकार, भेद, अन्धकार, छाया, आलोक और ताप-ये सब पुद्गल के पर्याय हैं। शब्द, आलोक और ताप को पौद्गलिक मानने में जैनों के कतिपय अंशों में वर्तमान वैज्ञानिक शोध का आभास प्राप्त होता है । न्याय दर्शन को यह मान्यता स्वीकार नहीं है, कि अन्धकार और छाया पुद्गल की पर्याय विशेष हैं। विज्ञान तथा धर्म-अधर्म : धर्म और अधर्म, यहां पर पूण्य और पाप नहीं हैं । ये दोनों जैन दर्शन के पारिभाषिक शब्द हैं । विशेष अर्थ है इन दोनों शब्दों का। धर्म का अर्थ है, गति में सहकारी और अधर्म का अर्थ है, स्थिति में सहकारी। जीव और पुद्गल में अपनी गति और अपनी स्थिति होती है। ये दोनों क्रियाएं हैं। जिस प्रकार जल मत्स्य की गति में सहयोग करता है, उसे चलाता नहीं है उस प्रकार धर्म भी पुद्गल और जीव की गति में सहयोग करता है, उन्हें चलाता नहीं है। धर्म द्रव्य अमूर्त है, निष्क्रिय है, नित्य है और लोकव्यापी है। जिस प्रकार चलते पथिक की स्थिति में वृक्ष की छाया सहयोग प्रदान करती है, उसे ठहराती नहीं है, उसी प्रकार अधर्म द्रव्य भी जीव और पुदगल की स्थिति में सहयोगी बनता है । अधर्म अमूर्त है, निष्क्रिय है, नित्य है, और लोकव्यापी है । आज' का विज्ञान जिसको ईथर कहता है, वह धर्मअधर्म द्रव्य है। विज्ञान और आकाश : जो जीव और अजीव सबको अपने में समा लेता है, अपने में अवकाश एवं स्थान प्रदान करता है, वह आकाश द्रव्य कहा गया है । आज का विज्ञान इस तत्त्व को Space कहता है। आकाश अमूर्त, निष्क्रिय है, नित्य है, और लोक तथा अलोक दोनों में परिव्याप्त रहता है। अतः आकाश के दो भेद हैं-लोकाकाश और अलोकाकाश । अपने से भिन्न अन्य समस्त द्रव्यों का आश्रयभूत है, आधार है। इसका अन्य कोई आधार नहीं है, वह स्वप्रतिष्ठ ही है। विज्ञान और काल : जगत के समस्त पदार्थों के परिवर्तन का कारण काल द्रव्य होता है । द्रव्यों का परिवर्तन द्रव्यों में स्वयं होता है, पर काल द्रव्य, अन्य द्रव्यों के परिवर्तन में, रूपान्तरण में, निमित्त कारण होता है । काल अमूर्त है, नित्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001339
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1992
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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