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________________ 3 अध्यात्म प्रवचन : एक संदर्शन (तृतीय भाग) भारतीय धर्म, दर्शन के गंभीर चिन्तक सत्य के स्पष्ट विवेचक एवं निर्भीक उद्घोषक, प्रज्ञा महर्षि राष्ट्रसन्त उपाध्याय श्री अमर मुनि का नाम, आज समस्त अध्यात्म जगत में एक जागृत प्रज्ञाशीलता का पर्याय है। प्रत्येक दिशा में उन्मुक्त एवं स्वतन्त्र, तटस्थ तथा संतुलित विचार चिन्तन, जिसमें मुखरित होता है भारतीय मनीषा का मूलस्वर, दर्शन का आलोक और धर्म का अमृत-चिन्तन। गुरुदेव श्री अमर मुनि, स्थानकवासी जैन श्रमण के परिवेश में समग्र जैनत्व के प्रतीक हैं। सम्प्रदाय और रूढ़िवाद की संकीर्णता से सर्वथा मुक्त; महावीर के अनन्त सत्य का समग्रता के साथ दर्शन. प्रवचन एवं प्रस्थापना करने में सक्षम, वागदेवता के वरदपुत्र, महावीर के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी महान् मनीषी हैं। आपश्री के अध्यात्म विषयक प्रवचनों का एक विराट संस्करण “अध्यात्म प्रवचन" भाग 1, लगभग 25 वर्ष पूर्व प्रकाशित हो चुका है। उसमें मुख्यतः दर्शन का स्पर्श करने वाले गूढ़ अध्यात्म विषयों पर बहुत ही सुन्दर, सन्तुलित और हृदयस्पर्शी प्रवचन हैं। अध्यात्म प्रवचन (भाग 2) में ज्ञान एवं आचार के गहन तथ्यों को उद्घाटित करने वाले , तत्वचिन्तन प्रधान जीवनस्पर्शी तत्वों का विशद विवेचन हुआ है। ज्ञान-मीमांसा के अन्तर्गत प्रमाण, नय, आदि का तथा आचार-मीमांसा में श्रावक की आचार-मर्यादा, आदर्श जीवन शैली पर नई दृष्टि से चिन्तन किया गया है। प्रस्तुत तृतीय भाग में भारतीय एवं पाश्चात्य दर्शन, कर्मतत्त्व, षड्द्रव्य, आदि तत्त्वों पर बहुत ही व्यापक एवं तुलनात्मक विवेचन चिन्तन है। इस प्रवचन संग्रह का सम्पादन किया है आपके ही विद्वान् शिष्य श्री विजय मुनि जी शास्त्री ने। श्री विजय मुनि जी एक बहुश्रुत चिन्तक तो है ही, प्रवचन एवं लेखनकला के क्षेत्र में स्वतः प्रतिष्ठापन्न हैं। अब तक 50 से अधिक पुस्तकों का सम्पादन/लेखन कर चुके हैं। प्राप्ति स्थान * सन्मति ज्ञान पीठ, जैन भवन, लोहामंडी, आगरा-282002 * वीरायतन, राजगिर, 403116 जिला, नालन्दा (बिहार) Jam ed
SR No.001339
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1992
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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