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________________ १६२ अध्यात्म प्रवचन : भाग तृतीय कार्य था--जगत के पदार्थों में और घटनाओं में व्यवस्था स्थापित करना। क्योंकि ग्रीस में अव्यवस्था उत्पन्न करने वाले प्रभावशाली देवता का नाम था-पेन (pen)। कहा जाता है, कि उसके पैर बकरे के थे, और उसकी बुद्धि भी बकरे की बुद्धि के समान ही मानी जाती थी। ग्रीक लोग इस अज-वाद भोर अज-बुद्धि देवता को अव्यवस्था का देवता कहते थे। इसके विध्वंसात्मक कार्यों से लोगों की रक्षा करने का काम अथवा जगत की रक्षा करने का काम व्यवस्था देवो के हाथ में था। जिस प्रकार वैदिक परम्परा के ऋषियों ने व्यवस्था करने वाला तत्त्व का नाम 'ऋत' रखा था, उसी प्रकार ग्रीक लोगों ने उसका नाम 'व्यवस्था-देवी' रखा । ग्रीक देश की यह कल्पना भारत के असुर और देवों की कल्पना से मेल खाती है। ग्रीक धर्म की यह पौराणिक कल्पना है। सम्पूर्ण ग्रीस देश व्यवस्था देवी को प्रसन्न करने के लिए और अव्यवस्था के देव के उत्पादों से बचने के लिए जो आराधना एवं उपासना करता था, वही वस्तुतः ग्रीस देश का प्राचीन धर्म है। इसी धर्म में से आगे चलकर विकास करते-करते इस प्रकार दर्शन की उत्पत्ति है। तत्व-मीमांसा : काल क्रम से पश्चिम-दर्शन का उदय ग्रीस के पूर्वी उपनिवेश आईओनिया (lonia) यवन देश में हुआ था । वहाँ के दार्शनिकों ने सर्वप्रथम जगत की मीमांसा की । जगत की वस्तुओं को देखकर उनके मन में आश्चर्य होता था, और इस आश्चर्य को शान्त करने के लिए जो प्रयत्न किए गए उसी में से यूनानी-दर्शन का जन्म हुआ । जगत के सम्बन्ध में जो सबसे पहला प्रश्न था, वह यह था, कि जगत क्या है ? कहाँ से आया ? और कैसे आया ? इसका कारण क्या है ? इस जगत में विफलता क्यों होतो है ? और उसका मूल कारण क्या है ? इस प्रकार यूनान के विचारक जगत के मूल कारण के सम्बन्ध में अपने मन में जो जिज्ञासा रखते थे, उस जिज्ञासा का परिणाम हो दर्शन-शास्त्र की उत्पत्ति का मूल कारण बना । भारत के ऋषि भी जगत को देख करके यही विचार करते थे, कि यह क्या है ? कहाँ से आया है ? ऋग्वेद में इस प्रकार के प्रश्न और उनका समाधान देखने में आता है। भारतीय ऋषियों ने कल्पना की, कि यह जगत जो विचित्र और विविध प्रकार का है, उसका मूल कारण सत् है, अथवा असत् है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001339
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1992
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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