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________________ पाश्चात्य दर्शन की पृष्ठभूमि १३७ कि प्रत्येक मनुष्य अपने आप में दार्शनिक होता है । दर्शन का सम्बन्ध स्कूल और कॉलेज की शिक्षा से नहीं है, इसका सम्बन्ध है-हित एवं अहित की विवेचना से । जो व्यक्ति शुभत्व एवं अशुभत्व के सम्बन्ध में जितना अधिक स्पष्ट विचार कर सकता है, वह उतना ही बड़ा दार्शनिक माना जाता है। इससे स्पष्ट है, कि मानव जीवन के हर पहलू पर दर्शन का प्रभाव पड़ता है । दर्शन की महत्ता के सम्बन्ध में भारतीय और पाश्चात्य-दर्शनों ने काफी लिखा है। हमारे व्यक्तिगत जीवन के अतिरिक्त हमारे सामाजिक जीवन और राष्ट्रीय जीवन पर भी उसका प्रभाव पड़ता है । क्योंकि प्रत्येक सामाजिक विप्लव, विद्रोह अथवा राजनैतिक क्रान्ति के पीछे कुछ प्रभावशाली दार्शनिक सिद्धान्तों की पृष्ठभूमि रहती है । ईस्वी सन् १७८६ के फ्रांसीसी विप्लव के पीछे दार्शनिक रूसो के क्रान्तिकारी विचारों की शक्ति थी। भारतीय राजनैतिक क्रान्ति में अथवा स्वतन्त्रता संग्राम में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के दार्शनिक विचारों की शक्ति थी। क्योंकि उनका अहिंसात्मक आन्दोलन आज के युग का एक नया दर्शन था, जिसके पीछे उनका वर्षों का चिन्तन और मनन था। इसी प्रकार समाजवाद और साम्यवाद के दर्शन के पीछे भी दार्शनिक व्यक्तियों के चिन्तन का बल है। रूसी क्रान्ति इसका एक ज्वलन्त उदाहरण है । इस प्रकार दर्शन का प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में व्यक्ति, समाज और राष्ट्र पर प्रभाव पड़ता है। क्योंकि किसी देश की संस्कृति उसके दार्शनिक विचारों की प्रतिच्छाया होती है। प्रत्येक दर्शन के पीछे उस देश के दार्शनिकों के चिन्तन एवं मनन का प्रबल बल होता है । वर्शन की व्यापकता : __ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में दर्शन सबसे अधिक व्यापक है । क्योंकि अन्य जितने भी सिद्धान्त अथवा वाद होते हैं, उन सबका मूल दर्शन में हो उपलब्ध होता है। किसी भी देश की संस्कृति और इतिहास की परीक्षा उसके दर्शन से ही की जा सकती है । यही कारण है, कि युग-युग से समाज का प्रबुद्ध वर्ग दर्शन-शास्त्र की विकास परम्परा में महत्वपूर्ण योग प्रदान करता आया है । किसी भी जाति की संस्कृति के मुख्य अंग चार माने जाते हैं-तत्त्व-ज्ञान, नीति, कला और विज्ञान । प्रत्येक जाति ही नहीं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में भी इन चार अंगों का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। मानव-जाति के विकास के ये चार आधार-स्तम्भ माने जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001339
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1992
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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