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९४ अध्यात्म-प्रवचन
परम साध्य मोक्ष की सिद्धि के लिए वेद के उद्गाता ऋषि ने तीन साधन बतलाएँ हैंज्ञान, कर्म और भक्ति। उपनिषद् तथा गीता में यह बात अधिक स्पष्ट हो जाती है। गीता का सारा सार इन तीन तत्वों में समा गया है। शेष सब उस का ही विस्तार अथवा संक्षेप होता गया है।
तथागत बुद्ध ने कहा-जीवन के उच्चतर लक्ष्य निर्वाण को पाने का रास्ता एक ही है-प्रज्ञा, शील और समाधि। निर्वाण के ये तीनों अचूक साधन हैं। प्रज्ञा का अर्थ है, दृष्टि। शील का अर्थ है, सदाचार और समाधि का अर्थ है, संकल्प।
तीर्थंकर वर्धमान महावीर ने कहा-संसार का विपक्ष मोक्ष है, उसे प्राप्त करने के उपाय तीन हैं-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र। इन तीनों के समन्वय से शाश्वत सुख मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इन तीन में तप को मिला देने से मोक्ष मार्ग चार हो जाते हैं-दर्शन, ज्ञान, चारित्र तथा तप। भगवान महावीर ने चारों के समुदाय को मोक्ष-मार्ग कहा है। मार्ग का अर्थ है-उपाय एवं साधन। इन साधनों में एक साधन, चारित्र एवं आचार है। आचार की परिभाषा
जैनधर्म में आचार, चारित्र और व्रत को जीवन विकास का अनन्य कारण माना गया है। पञ्च आचार, पञ्च चारित्र और पञ्च अणुव्रत तथा पञ्च महाव्रतों का प्रतिपादन किया गया है। स्थानांग सूत्र के द्वितीय स्थान में दो प्रकार के धर्मों का कथन उपलब्ध होता है-श्रुत धर्म और चारित्र धर्म। चारित्र धर्म के दो प्रकार हैं-सागार धर्म और अनगार धर्म| श्रावक का आचार और श्रमण का आचार। पञ्च आचार और पञ्च चारित्र का कथन श्रमण की अपेक्षा से किया गया है। महाव्रतों का विधान भी श्रमण के लिए होता है। श्रावक के लिए पञ्च अणुव्रतों का विधान है। सम्यग्दर्शन :
आत्म-विकास के क्रम में, श्रावक का स्थान, चतुर्थ गुणस्थान माना गया है। इसके पूर्व के तीन गुणस्थानों में मिथ्या दर्शन होता है। सम्यग्दर्शन की उपलब्धि चतुर्थ गुणस्थान में होती है। साधक के जीवन में ज्ञान और आचरण की अपेक्षा भी प्रथम स्थान श्रद्धान का होता है। क्योंकि श्रद्धान-रहित जीवन में न ज्ञान होता है, और न आचरण। यदि ज्ञान एवं आचरण होता भी है तो वह मिथ्या होता है। ज्ञान और आचरण से पूर्व देव, गुरु और धर्म में अडिग एवं अचल श्रद्धान परम आवश्यक है। आप्त, आगम और आज्ञा में अटूट विश्वास होना चाहिए।जीव तथा अजीव आदि तत्वों पर भी श्रद्धा, आस्था तथा निष्ठा ही सम्यग्दर्शन है। सम्यग्ज्ञान :
सम्यग्ज्ञान का अर्थ है-आत्म-बोध। स्व को और पर को समझना, सम्यग्ज्ञान होता है। ज्ञान पाँच प्रकार का है। जिससे पदार्थों का बोध हो, वह ज्ञान है। जो जीव को और
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