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________________ 100. भाषा-विज्ञान और व्याकरण || | १०. भाषा-विज्ञान और व्याकरण भाषा विज्ञान का संबन्ध व्याकरण से है, और व्याकरण का भाषा विज्ञान से। व्याकरण-ग्रन्थों में, अष्टाध्यायी का गौरव-पूर्ण स्थान माना गया है। यह ग्रन्थ महान् वैय्याकरण पाणिनि की अमर रचना है। अष्टाध्यायी में संस्कृत भाषा का व्याकरण अत्यन्त वैज्ञानिक ढंग से लिखा गया है। पाणिनि का समय पाँचवीं शती ईसा पूर्व के मध्य में है। कुछ इतिहासकार विद्वान् पाणिनि का समय ८00 ईसा पूर्व से ३00 ईसा पूर्व के मध्य में स्वीकार करते हैं। अष्टाध्यायी : अष्टाध्यायी में आठ अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में चार पाद हैं, और प्रत्येक पाद में अनेक सूत्र हैं। लगभग चार हजार सूत्र हैं। पाणिनि ने शब्द रूपों और धातु रूपों का अति सूक्ष्मता के साथ प्रकृति के और प्रत्यय के रूप में विश्लेषण किया है। पाणिनि ने धातु-पाठ, गण-पाठ और उणादि सूत्र भी लिखे हैं। अष्टाध्यायी विश्व का एक आदर्शभूत व्याकरण ग्रन्थ है। परिभाषाओं से परिपूर्ण है। इसकी कुछ विशेषताएँ इस प्रकार हैं १.सभी शब्दों को धातुओं पर आधारित किया है। धातु किसी क्रिया का भाव प्रकट करती है। इन्हीं से उपसर्ग तथा प्रत्यय आदि की सहायता से अनेक शब्द बना लिए जाते हैं। २. भाषा का प्रारम्भ वाक्यों से हुआ है, इसका भी प्रथम उल्लेख यहीं है। इसके अनुसार भाषा में वाक्य ही प्रधान है। ३. यास्क के नाम एवं आख्यात आदि चार भेदों को स्वीकार न करके पाणिनि ने समस्त शब्दों को सुबन्त तिङन्त-इन दो विभागों में विभक्त किया है। आज तक विश्व में शब्द के जितने भी विभाजन किए गए हैं, उनमें यह सबसे अधिक वैज्ञानिक है। पाश्चात्य विद्वानों के आठ भेद (EightParns of Speech) भी इसके समकक्ष एवं समक्ष नहीं ठहर पाते हैं। ४. ध्वनियों का स्थान और प्रयत्न के अनुसार वैज्ञानिक वर्गीकरण जो इस में है, वह विज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। ५. लौकिक और वैदिक संस्कृत का तुलनात्मक अध्ययन भी इसकी सबसे बड़ी अपनी विशेषता है। आगम का स्वरूप : आगम का अर्थ सिद्धान्त होता है, धर्म-शास्त्र को भी आगम कहा गया है। जैन परम्परा में, आगम का अर्थ धर्मशास्त्र, तीर्थंकर वाणी और सिद्धान्त किया जाता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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