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प्रमाण और तर्क ८१ अनुमान प्रमाण :
अनुमा ज्ञान का साधन अनुमान है। यह परोक्ष ज्ञान है,जो कि साध्य से अनिवार्य रूप से संबन्धित हेतु अथवा लिंग से होता है। अनुमान का आधार हेतु है। हेतु और साध्य का अनिवार्य सम्बन्ध है, इस संबन्ध को व्याप्ति कहते हैं। इसके द्वारा ही पक्षधर्मता का ज्ञान, परामर्श कहा जाता है। अतः अनुमान को परामर्शजन्य ज्ञान भी कहा गया है। अनुमान लिंग के द्वारा साध्य के पक्ष में उपस्थिति का ज्ञान है, जो कि पक्षधर्मता में है, और व्याप्ति से अनिवार्य रूप से संबन्धित है। जैसे कि पर्वत में अग्नि है, क्योंकि वहाँ धूम है, जहाँ पर धूम होता है, वहाँ अग्नि होती है, इस प्रकार पाकशाला में है, यहाँ पर भी धूम है, अतः अग्नि अवश्य ही होनी चाहिए। क्यों कि धूम और अग्नि में व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध होता
भारतीय न्याय-शास्त्र के अनुसार अनुमान के कम से कम दो तथा तीन और पाँच अवयव होते हैं। दो हों, तो साध्य और हेतु। तीन हों, तो पक्ष, साध्य और हेतु। यदि पाँच हों, तो इस प्रकार होंगे
१. प्रतिज्ञा-पर्वत में अग्नि है २. हेतु-क्योंकि पर्वत में धूम है ३. दृष्टान्त-जैसे पाक शाला में ४. उपनय-इस पर्वत में धूम है ५. निगमन-अतः इस पर्वत में अग्नि है
प्रयोजन के अनुसार अनुमान के दो भेद इस प्रकार से हैं-स्वार्थ और परार्थ। स्वार्थ अनुमान अपने लिए होता है। परार्थ अनुमान दूसरे को समझाने के लिए होता है। इसमें वाक्यों को क्रमबद्ध रूप में रखने की आवश्यकता है, इन पञ्च अवयव रूप वाक्य प्रयोग को न्याय-शास्त्र में न्याय कहा गया है। प्रकारान्तर से भेद :
व्याप्ति-स्थापन की दृष्टि से अनुमान के तीन भेद इस प्रकार हैं
१. केवलान्वयि अनुमान-इसमें साधन और साध्य सदा साथ पाए जाते हैं। इसमें व्याप्ति केवल अन्वय के द्वारा स्थापित होती है, और इसमें व्यतिरेक बिल्कुल नहीं होता। जैसे कि
सभी मनुष्य मरण-शील हैं राम मनुष्य है अतः राम मरण-शील है इस अनुमान के पहले वाक्य में, उद्देश्य और विधेय के बीच व्याप्ति का सम्बन्ध स्पष्ट
२.केवल व्यतिरेकि अनुमान-इसमें अनुमान साधन और साध्य की अन्वय मूलक व्याप्ति से नहीं, बल्कि साध्य के अभाव के साथ साधन के अभाव की व्याप्ति के ज्ञान से होता है
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